अपठित गद्यांश से अभिप्राय एक ऐसे गधाश से होता है जो पाठ्य पुस्तक से संबंधित न होकर अन्य किसी पुस्तक, निबंध, कहानी, समाचार आदि से संबंधित होता है। उक्त गद्यांश विद्यार्थी द्वारा पहले से पढ़ा गया नहीं होता जैसा कि इसके नाम से हो जाहिर है-अपठित अर्थात् जो पठित नहीं है।
इन गद्यांशों को निर्धारित पुस्तकों से नहीं लिया जाता । इन गद्यांशों को पढ़ने से पढ़ने की रुचि जागृत होती है तथा ज्ञान का विस्तार होता है। उच्च कक्षाओं में अपठित गद्यांश को पाठ्यक्रम में भी शामिल किया गया है, इसलिए इनका अभ्यास आरंभ से ही करना चाहिए।
परीक्षा में अपठित गद्यांश देकर उससे संबंधित पांच प्रश्न पूछे जाते हैं। प्रश्नों को हल करने के लिए आवश्यक है कि प्रश्नों का उत्तर देने के पूर्व दो-तीन बार उस गद्यांश को पढ़ा लिया जाए। तीन बार पठन के पश्चात् दिए गए प्रश्नों को ध्यान में रखते हुए गद्यांश को एक बार पुनः पढ़ लेना चाहिए तभो उत्तर लिखने चाहिए। ऐसा करने से प्रश्नों के उत्तर ठीक होने की संभावना शत-प्रतिशत हो जाती है।
(क) गद्यांश की विषय-वस्तु / मूल भाव को समझने के लिए उसे ध्यानपूर्वक 2-3 बार पढ़ें। कई बार पढ़ने से गद्यांश का मूल भाव समझ में आ जाता है I
(ख) दिए गए विकल्पों को ध्यानपूर्वक पढ़ें और उचित विकल्प का चुनाव करें।
(ग) पूछे गए प्रश्नों के उत्तर अपने शब्दों में लिखने चाहिए, गद्यांश की भाषा में नहीं। लेकिन उत्तर गद्यांश से ही शीर्षक सरल, संक्षिप्त एवं सारगर्थित होना चाहिए।
(घ) उत्तर सटीक और स्पष्ट होना चाहिए।
1. जो कार्य एक समय असंभव माने जाते थे, योग एवं विज्ञान के द्वारा उन्हें भी संभव कर दिया है। संपत्ति की लालसा ने हमारे दिलों को पत्थर बना दिया है। जीवन-मूल्यों का निरंतर हास होता जा है। हमारे स्पर्धात्मक जीवन के कारण हम मानसिक तनाव के शिकार हो गए हैं। इस मानसिक तनाव के एमरिणाम भी प्रकट होते जा रहे हैं। डायबिटीज, कैंसर तथा उच्च रक्तचाप ने तो घर-घर में अपना वास कर लिया है। मानव की शारीरिक बीमारियों या मानसिक यातनाओं का एकमात्र इलाज योग के पास है। योग से मनुष्य की मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक उन्नति भी होती है।
(क) किसकी लालसा ने हमारे दिलों को पत्थर बना दिया है?
(i) भूमि
(ii) शिक्षा
(iii) संपत्ति
(iv) विकास
(ख) हमारे मानसिक तनाव का क्या कारण है?
(i) आपसी स्पर्धा
(ii) योग
(iii) विज्ञान
(iv) प्रगति
(ग) मानसिक तनाव के दुष्परिणाम से कौन कौन से रोग हो सकते हैं?
(i) उच्च रक्तचाप
(ii) कैंसर
(iii) डायबिटीज
(iv) उक्त सभी
(घ) मनुष्य की मानसिक, शारीरिक तथा आध्यात्मिक उन्नति किसके द्वारा संभव है?
(i) शिक्षा
(ii) योग
(iii) व्यायाम
(iv) विज्ञान
(ङ) असंभव कार्य को किसने संभव कर दिया है?
(i) योग
(ii) विज्ञान
(iii) शिक्षा
(iv) विकल्प i और ii सही हैं
उत्तर:
(क) (iii), (ख) (i), (ग) (iv), (घ) (ii), (ङ) (iv)
Know English syllabus: Class 8:
2. यदि हम निरंतर प्रयत्न करेंगे तो निश्चय ही अपने सभी लक्ष्यों को प्राप्त कर लेंगे, किंतु प्रायः या जाता है कि अधिक आशावादी लोग थोड़ा सा प्रयत्न करके अधिक फल की कामना करने लगते हैं और वांछित फल प्राप्त न होने पर निराश हो जाते हैं। अतः जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए परिस्थितियों समक्ष घुटने न टेकें, बल्कि हिम्मत से उनका मुकाबला करें। याद रखें, जितना कठोर हमारा परिश्रम होगा, फल भी उतना ही मीठा होगा।
(क) लक्ष्य की प्राप्ति के लिए क्या किया जाना चाहिए ?
(i) विश्राम
(ii) प्रयत्न
(iii) निरंतर प्रयत्न
(iv) आशावादी दृष्टिकोण
(ख) थोड़ा सा प्रयत्न करके अधिक फल की कामना करने वाले लोग होते हैं-
(i) आशावादी
(ii) कामचोर
(iii) कर्मठ
(iv) निराशावादी
(ग) आशावादी लोग मनोवांछित फल प्राप्त न होने पर होते हैं:
(i) प्रसन्न
(ii) निराश
(iii) निर्जीव
(iv) सजीव
(घ) कठोर परिश्रम से क्या प्राप्त होता है?
(i) मनवांछित फल
(ii) मिठाई
(iii) उपहार
(iv) विकल्प i और ii सही हैं
(ङ) इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक छाँटकर लिखिए
(i) हिम्मत
(ii) मुकाबला
(iii) कठोर श्रम
(iv) परिश्रम का महत्त्व
उत्तर:
(क) (iii), (ख) (i), (ग) (ii), (घ) (i), (ङ) (iv)
Know Hindi syllabus: Class 8
3. छोटे-छोटे तिनके जब तक बिखरे रहते हैं, तब तक उनमें किसी प्रकार की शक्ति नहीं होती, पर यही तिनके जब आपस में मिल जाते हैं तो मजबूत रस्सी बन जाती है। उसमें हाथी को बाँधने की क्षमता आ जाती है। इस प्रकार मन की तमाम बिखरी शक्तियों को एक साथ बाँध लेने पर आप इस रस्सी से अपने जीवन की प्रत्येक आकांक्षा को अपना दास बना सकते हैं, अपने पास बाँधकर रख सकते हैं, यही मूलमंत्र अपने आप को पहचानने का है। किरणें एक बिंदु पर एकत्रित होती हैं तो आग लगा देती हैं सारी समस्या ध्यान को एक बिंदु पर एकत्रित करने की है। अपना रास्ता स्वयं बनाएँ, अपना जीवन खुद सँवारें। किसी और के सहारे न चलें आप कुछ भी हों, कुछ भी चाहें, आपको सब मिल सकता है बशर्ते कि आप से जो कुछ कहा गया है, उस पर पूरी लगन और ईमानदारी से काम करें। आपकी सब इच्छाएँ पूरी होंगी।
(क) तिनकों में शक्ति क्यों नहीं होती ?
(i) बिखरे होते हैं
(ii) एक साथ होते हैं
(iii) कमजोर होते हैं
(iv) सभी
(ख) तिनकों में हाथी को बाँधने की शक्ति कब आ जाती है?
(i) जब बिखरे होते हैं
(ii) जुड़ जाते हैं
(iii) जब रस्सी बन जाते हैं
(iv) कोई नहीं
(ग) बिखरी शक्तियों को एकत्रित करने से क्या लाभ है?
(i) प्रसन्न रहते हैं
(ii) आग लगती है
(iii) आकांक्षा पूर्ण होती है
(iv) कोई नहीं
(घ) हम जो कुछ चाहते हैं, वह सब हमें कैसे प्राप्त हो सकता है?
(i) लगन से
(ii) ईमानदारी से
(iii) ध्यान केंद्रित करके
(iv) तीनों सही है।
(ङ) उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक है
(i) जीवन का मूलमंत्र
(ii) लगन का महत्त्व
(iii) सफलता का रहस्य
(iv) ईमानदारी
उत्तर:
(क) (i), (ख) (iii), (ग) (iii), (घ) (iv), (ङ) (iii)
Know Science syllabus: Class 8
4. सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक बेंजामिन फ्रैंकलिन को अखबार प्रकाशित करने के लिए कुछ धन की आवश्यकता हुई। वे अपने एक मित्र के पास पहुंचे और उससे आवश्यक राशि उधार ले ली। जब उनका काम पूरा हो गया तो वह राशि अपने मित्र को वापस करने के लिए गए। उनके उस मित्र ने वह राशि लेने से इंका कर दिया और कहा- कृपया, आप इसे अपने ही पास रखें और किसी अभावग्रस्त की इससे सहायता करें। अगर वह ईमानदार आदमी होगा, तो वह भी रकम वापस करने आएगा। तब आप उसे भी यह बात कहें कि इस रकम से वह किसी जरूरतमंद की सहायता करे। इस प्रकार मेरे कुछ धन से सचमुच संकटग्रस्त लोगों को सहायता हो सकेगी।
(क) बेंजामिन फ्रैंकलिन को किस कार्य के लिए धन की आवश्यकता पड़ी?
(i) भवन निर्माण
(ii) पुस्तक लेखन
(iii) अखबार प्रकाशन
(iv) विद्यालय निर्माण
(ख) उनको धनराशि किससे प्राप्त हुई ?
(i) अपने मित्र से
(ii) सरकार से
(iii) निजी संस्था से
(iv) परिवार से
(ग) क्या आवश्यकता पूरी हो जाने पर उन्होंने धनराशि मित्र को लौटा दी?
(i) नहीं
(ii) हाँ
(iii) आंशिक रूप से
(iv) विकल्प ii और iii सही है
(घ) मित्र ने उस धनराशि का क्या किया ?
(i) आंशिक रूप से ली
(ii) वापस ले ली
(iii) लेने से इंकार कर दिया
(iv) उपरोक्त सभी
(ङ) मित्र द्वारा धनराशि न लेने का क्या कारण था ?
(i) जरूरतमंद की सहायता
(ii) धन की आवश्यकता नहीं थी
(iii) धनवान था
(iv) कोई नहीं नर
उत्तर:
(क) (iii), (ख) (i), (ग) (ii), (घ) (iii), (ङ) (i)
Know Social Science syllabus: Class 8
5. हम कई बातों को तोते की भाँति रटते तो हैं, पर उनका प्रयोग अपने व्यवहार में नहीं करते। यह तो एक प्रकार में हमारा स्वभाव ही बन गया है, और इसका एकमात्र कारण है हमारी दुर्बलता। इस प्रकार दुर्बल हृदय से कोई कार्य नहीं हो सकता। अतः उसको दुर्बलता दूर करके उसे सबल बनाना होगा। सबसे पहले नवयुवकों को बलवान बनना चाहिए। मित्रो! पहले तुम बलवान बनो धर्म पीछे आ जाएगा। मैं तुमको यही परामर्श दूँगा। आज के युग में गीता के अभ्यास की अपेक्षा फुटबॉल आदि खेलों के द्वारा स्वर्ग के अधिक निकट पहुँच जाओगे। यदि तुम्हारी भुजाएँ बलवान होंगी तो तुम गोताको अधिक अच्छी तरह समझोगे। जब तुम अपने पैरों पर अधिक दृढ़ता से खड़े होओगे तो तुम भी अपने आप को मनुष्य समझोगे और उपनिषदों का ज्ञान प्राप्त करके आत्मा को शक्ति को जान सकोगे। (स्वामी विवेकानंद)
(क) हमारे दुखों का मूल कारण क्या है?
(i) आंतरिक भावना
(ii) दुर्बलता
(iii) सचलता
((iv) आपसी द्वेष
(ख) स्वामी विवेकानंद युवकों को क्या परामर्श दे रहे हैं?
(i) शिक्षित होने का
(ii) बलवान बनने का
(iii) धर्मावलंबी बनने का
(iv) ईमानदारी का
(ग) बातों को तोते की तरह रटने की बजाय क्या करना चाहिए ?
(i) उपदेश देना चाहिए
(ii) व्यवहार में लाना चाहिए
(iii) मन लगाकर पढ़ना चाहिए
(iv) सभी विकल्प
(घ) आत्मा की शक्ति को कैसे जाना जा सकता है?
(i) दृढ़ता से खड़े होकर
(ii) उपनिषदों का ज्ञान प्राप्त करके
(iii) सत्यनिष्ठा से
(iv)। और सही है
(ङ) गद्यांश के अनुसार गीता को कब अच्छी तरह समझ सकते है?
(i) बलवान बनकर
(ii) सफल बनकर
(iii) वीर बनकर
(iv) अभ्यास करके
Know Maths syllabus: Class 8
6. राजा और मंत्री में विवाद चल रहा था। राजा कहता था कि मनुष्य अधिकांशत: सच्चे होते हैं। मंत्री कह रहा था कि यदि समुचित निगरानी रखी जाए तभी सच्चे होते हैं। निगरानी के अभाव में सभी अवसर का लाभ उठाते हैं और बेईमान बन जाते हैं। विवाद का अंत न होते देख मंत्री ने अपनी बात को सत्यता को प्रमाणित करने का दावा किया। राजा बात मान ली। एक पक्का तालाब बनवाया गया। जब वह पूरी तरह तैयार हो गया तो नगर में घोषणा कराई गई कि इस में हर घर से एक लोटा दूध डाला जाए। दूध रात में तालाब में डालना होगा। तालाब पर कोई चौकीदारी नहीं रहेगी। में लोग आए। सभी ने सोचा कि जब सभी लोग दूध डालेंगे तो मेरे एक लोटे जल से किसी को मेरी करनी का पता भी न चलेगा। यही विचार सबके मन में अनायास घूम गया। सभी ने तालाब में जल डाला। राजा और मंत्री अगले दिन त:काल तालाब पर आए देखा तो पूरा तालाब पानी से भरा था, उसमें एक भी लोटा दूध का नहीं डाला गया था।
(क) राजा का क्या कथन था?
(i) अधिकतर मनुष्य सच्चे होते हैं
(ii) मनुष्य झूठे होते हैं
(iii) मनुष्य वीर होते हैं
(iv) सभी विकल्प
(ख) मंत्री का मनुष्य के बारे में क्या था?
(i) निगरानी में मनुष्य सच्चे होते हैं
(ii) मनुष्य झूठे होते हैं
(iii) मनुष्य बेईमान होते हैं
(iv) सभी विकल्प
(ग) विवाद का अंत करने के लिए क्या बनवाया गया?
(i) एक पक्का तालाब
(ii) एक इमारत
(iii) विद्यालय
(iv) चिकित्सालय
(घ) इस कहानी से हमें क्या शिक्षा मिलती है?
(i) चतुराई की
(ii) ईमानदारी की
(iii) समय की
(iv) वीरता की
(ड) सब ने तालाब में क्या डाला?
(i) एक लोटा जल
(ii) एक लोटा दूध
(iii) एक लोटा खीर
(iv) एक लोटा दही
Know Maths syllabus: Class 8
7. डॉ० एनी बेसेंट ने सर्वप्रथम विद्यालयों में प्रार्थना सभा की परंपरा आरंभ की। वे हिंदू शास्त्रों में अत्यधिक रूचि रखती थी। उन्होंने कहा था कि मनुष्य अपने विचारों द्वारा बना है। मनुष्य जैसा सोचता है, वैसा ही बन जाता है। अतएव हमें नित्य हो उस अनंत का चिंतन करना चाहिए। भगवान बुद्ध ने भी कहा है- "हम जो कुछ है, अपने विचारों द्वारा से बने हैं। विचार कार्य को जन्म देता है। हम जैसा विचार करते हैं, वही रूप हमारा स्वभाव धारण कर लेता है। तुम अपने स्वभाव का निरीक्षण करके उसका कोई दोष या अवगुण ढूंढ़ लो। अब देखो कि इस अवगुण का विपरीत गुण क्या है? मान लो कि तुम बड़े चिड़चिड़े स्वभाव के हो। अब इसके विपरीत गुण धैर्य ले लो, और नियमित रूप से प्रातः काल सांसारिक कार्यों से निवृ होकर चार-पाँच मिनट तक शांत भाव से बैठो और उस पर विचार करो। कदाचित् कुछ दिनों तक कोई परिवर्तन दृष्टिगोचर होगा तथा चिचिड़ापन तुम अभी भी अनुभव करोगे और उसे प्रकट भी कर दोगे, लेकिन नित्य प्रातः अभ्यास करते जाओ और अंत में तुम देखोगे कि चिड़चिड़ापन तुम्हारे अंदर से एकदम विलुप्त हो गया है।
(क) डॉ० एनी बेसेंट मे कौन सी परंपरा आरंभ की?
(i) परोपकार
(ii) हिंदू शास्त्र
(iii) प्रार्थना सभा
(iv) प्रातः काल सभा
(ख) डॉ० एनी बेसेंट किसमें अत्यधिक रुचि रखती थीं?
(i) अध्यापन कार्य
(ii) अध्ययन
(iii) हिंदू शास्त्र
(iv) सर्वधर्म
(ग) हमारा स्वभाव कैसा रूप धारण कर लेता है?
(i) हम जैसा सोचते हैं
(ii) हमारी जैसी संगत हो
(iii) हमारी जैसी शिक्षा हो
(iv) कोई नहीं
(घ) लेखिका ने अवगुण दूर करने के लिए क्या सुझाव दिया है?
(i) शिक्षा
(ii) सद्गुण का अभ्यास
(iii) प्रभु भक्ति
(iv) सद्विचार
(ड) उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक दीजिए?
(i) सद्गुण
(ii) भारतीय शास्त्र
(iii) विचारों का प्रभाव
(iv) विचार शक्ति
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8. सभ्यता के आदिकाल में ही मनुष्य ने पेड़-पौधों के महत्व को जान लिया था, उनके अस्तित्व की आवश्यकता को पहचान लिया था, और यह भी जान लिया था कि पेड़-पौधे केवल नेत्रों को सुख प्रदान करने के लिए ही नहीं, अपितु प्राणि-जगत के लिए भी अत्यंत आवश्यक है। इसीलिए ऋषि-मुनियों ने वृक्षोपासना के लिए मंत्र एवं पूजा आदि का विधान बनाया। आज भी भारत के अनेक प्रांतों में विशेष त्योहारों पर वृक्षों की पूजा की जाती है। प्राकृतिक संतुलन को बनाए रखने में वृक्षों का अत्यधिक महत्त्व है। प्रदूषण को कम करने के लिए यह एक अच्छा उपाय है कि अधिक से अधिक वृक्ष लगाए जाएँ और वायुमंडल को शुद्ध बनाया जाए। बच्चों को चाहिए कि ये वृक्षों के महत्व को जानकर अधिक-से-अधिक वृक्ष लगाएँ। किसी शुभ अवसर पर जैसे- होली, दीवाली तीज, क्रिसमस आदि त्यौहारों पर एक वृक्ष अवश्य लगाएँ तथा प्रदूषण कम करने में सहायक बनें।
(क) इस गद्यांश का उचित शीर्षक दीजिए?
(i) पेड़-पौधे
(ii) वृक्ष हमारा जीवन
(iii) वृक्षोपासना
(iv) वृक्ष ही जीवन
(ख) सभ्यता के काल में मनुष्य को क्या अनुभव हुआ?
(i) पेड़-पौधों का महत्त्व
(ii) शिक्षा का महत्त्व
(iii) एकता का महत्त्व
(iv) भोजन का महत्व
(ग) ऋषि मुनियों ने वृक्षोपासना पर क्यों बल दिया?
(i) वृक्ष हरियाली देते हैं
(ii) वृक्ष जीवन देते हैं
(iii) देवता प्रसन्न होते हैं
(iv) वृक्ष भोजन देते हैं।
(घ) पूर्वी का हमारे लिए क्या महत्त्व है?
(i) प्राकृतिक संतुलन बनाते हैं
(ii) प्राण वायु देते हैं
(iii) भोजन देते हैं
(iv) सभी विकल्प
(ड) पर्यावरण एवं संतुलने के लिए बच्चों को करना चाहिए?
(i) सफाई रखनी चाहिए
(ii) प्रदूषण कम करना चाहिए
(iii) वृक्ष लगाने चाहिए
(iv) शौर नहीं मचाना चाहिर
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9. हमारे देश में एक ऐसा भी युग था जब नैतिक और आध्यात्मिक विकास ही जीवन का वास्तविक लक्ष्य माना जाता था। अहिंसा की भावना सर्वोपरि थी। आज पूरा जीवन दर्शन ही बदल गया है। सर्वत्र पैसे की हाय-हाय तथा धन का उपार्जन ही मुख्य ध्येय हो गया है, भले ही धन-उपार्जन के तरीके गलत क्यों न हो? इन सबका असर मनुष्य के प्रतिदिन के जीवन पर पड़ रहा है। समाज का वातावरण दूषित हो गया है - याहूय वातावरण तो दूषित है ही; आज सब जानते हैं कि पर्यावरण की समस्याएँ कितनी चिंतनीय हो उठी हैं। इन सबके कारण मानसिक तनाव और अनेक व्याधियाँ पैदा हो रही हैं।
उत्तर-
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10. चंद्रमा का घटता बढ़ता रूप बादलों में भी छिपकर, कभी बाहर निकलकर झिलमिलाते तारों के साथ आँख मिचौली खेलता कितना मधुर और मोहक है। टिमटिमाते तारों के बीच चन्द्रमा का वैभव देखते ही बनता है। स्वयं चांद में चार चांद लग जाते हैं। अपने इन गुणों के कारण चाद बच्चे-बूढ़े, स्त्री-पुरुष सभी को आकर्षित कर लेता है। साधारण मानव जहां चंद्रमा के सौंदर्य को देखकर अभिभूत हो जाता है वहां कवियों की प्रसुप्त कल्पनाएं उद्बुद्ध हो जाती हैं और वैज्ञानिक चंद्रमा तक उड़ान संबंधी जानकारी प्राप्त करने के लिए क्रियाशील हो जाते हैं। सभी देश और जाति के कवियों ने चंद्रमा के गीत गाए है। वैज्ञानिकों ने चंद्रमा के संबंध में अधिकाधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए दिन-रात काम किया है।
उत्तर-
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11. मधुर वाणी मानव जीवन की अमूल्य निधि है। मधुर वाणी जिसके पास है वह दुनिया पर विजय पाने में सक्षम है। जिसके पास यह गुण विद्यमान है उसके लिए यह विश्व अमृत के समान है। वह सब काम करने में सफल हो जाता है। उसके सभी काम आसानी से हो जाते हैं। वह सबका प्रिय बन जाता है। लोग उसके विचारों से अवगत होने पर उसकी ओर खिंचे चले जाते हैं। मधुर वाणी से सुनने वाले और बोलने वाले दोनों को शीतलता की प्राप्ति होती है। परंतु सभी परिस्थितियों में शांत बने रहना आसान नहीं है। जब मन क्रोध की ज्वाला में जल रहा हो तो शांत रहना संभव नहीं होता। उस समय शांत रहने के लिए मन को समझाना पड़ता है। मन से अहंकार को निकालना पड़ता है। अहंकार त्याग करके ही मनुष्य मीठे वचन निकाल सकता है।
उत्तर-
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12. परिश्रम और निरंतर अभ्यास से कठिन समझे जाने वाला कार्य भी सरल हो जाता है। अभ्यास सबसे बड़ा गुरु होता है। अभ्यास करते रहने वाला व्यक्ति कभी न कभी सफल अवश्य होता है। नियमित अभ्यास करने से मूर्ख से मूर्ख व्यक्ति भी चतुर बन जाता है। एकलव्य ने बिना गुरु से मार्गदर्शन पाए ही केवल अभ्यास मात्र से ही धनुर्विद्या में निपुणता प्राप्त की। जो मनुष्य किसी के सिखाने से नहीं सीखता वह निरंतर अभ्यास से सीख जाता है। बट्ठे की निरंतर रगड़ से पत्थर की सिल भी चिकनी हो जाती है।
उत्तर-
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13. रवींद्रनाथ सांस्कृतिक स्वर के रूप में पूर्व और पश्चिम के समन्वय पर बल देते हैं, परंतु पश्चिमी विज्ञान को स्वीकार करते हुए भी उन्होंने उसके भौतिक प्रगतिशीलता के आदर्श को नहीं अपनाया है। वे समन्वय साधना का उत्कृष्टतम रूप भारतवर्ष की राष्ट्रीयता में देखते हैं। यह राष्ट्रीयता कालप्रवाह में बहकर आई असंख्य जातियों प्रजातियों के हार्दिक आदान-प्रदान, सहयोग और समन्वय के रूप में प्रतिफलित है। उनकी राष्ट्रीयता की कल्पना पश्चिम की शोषणशील एकांगी राष्ट्रचेतना से भिन्न है, जो उपनिवेशों का निर्माण कर राष्ट्रीय जीवनमान की अभिवृद्धि को ही एकमात्र सत्य जानती है। वस्तुतः भारतवर्ष की राष्ट्रीयता मानवता ही है और इसलिए अंतरराष्ट्रीयचेतना से उसका किंचित मात्र भी विरोध नहीं है। भारत का राष्ट्रधर्म मानवता की पुकार बनकर ही अपने आत्मधर्म को चरितार्थ कर सकता है।
उत्तर-
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14. लगभग दो सौ वर्ष की गुलामी ने भारत के राष्ट्रीय स्वाभिमान को पैरों से रौंद डाला, हमारी संस्कृति को समाप्त कर दिया, हमारे विश्वासों को हिला दिया और हमारे आत्मविश्वास को चकनाचूर कर दिया। किंतु अपने इस बूढ़े देश से प्यार करने वाले, इसके एक सामान्य संकेत पर प्राण न्योछावर करने वाले दीवानों का अभाव न था। एक आवाज़ उठी और देखते ही देखते राष्ट्र का दबा हुआ आत्माभिमान उन्मत्त हो उठा। इतिहास साक्षी है कि जाने और अनजाने में सहस्त्रों देशभक्त स्वतंत्रता की अनमोल निधि को पाने के लिए शहीद हो गए।
उत्तर-
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15. निरक्षरता की समस्या को कम करने के लिए साक्षरता अभियान चलाया जा रहा है। सरकारी और गैर-सरकारी स्तर पर लोगों को साक्षर बनाने के प्रयास बड़ी तेजी से हो रहे हैं। अधिकांश निरक्षर क्योंकि मेहनत-मजदूरी करने वाले लोग ही होते हैं, जिनका अधिकांश समय रोजी-रोटी के लिए संघर्ष करने में ही बीतता है, इसीलिए वे नियमित समय में पढ़ना-लिखना नहीं सीख सकते; इसीलिए इनके घरों के पास ही सुबह-शाम को अतिरिक्त समय में पढ़-लिख पाने की मुफ्त व्यवस्था की जाती है। यहाँ पुस्तकों व कॉपियों आदि की व्यवस्था भी मुफ्त में ही की जाती है। हर स्थिति के लोग इस व्यवस्था से लाभान्वित हो सकते हैं। किसी भी स्वतन्त्र देश में यदि लोग निरक्षर हैं तो सचमुच यह उस देश के सभी शिक्षित नर-नारियों के लिए घोर लग्जा की बात है।
उत्तर-
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16. हिंदी साहित्य को ही लीजिए जहाँ वीरगाथा-काल की रचनाओं में सोई वीरता को जगाने की शक्ति है, वहाँ भक्तिकालीन साहित्य में ईश्वर के प्रति अनन्य आस्था और भक्तिभाव को जगाने की अद्भुत क्षमता है। रीतिकालीन साहित्य में शृंगार की प्रबलता के बावजूद कुछ कवियों ने कीचड़ में कमल के समान अपनी कुछ रचनाओं से कर्तव्य-विमुख समाज को कर्तव्य पथ पर बढ़ने की प्रेरणा भी दी है। आधुनिक साहित्य में जीवन की व्यापकता का सफल चित्रण है। साहित्य में अनंत जीवन-शक्ति छिपी रहती है।
उत्तर-
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17. जो ज्ञान आसक्ति की ओर ले जाता है, वह ज्ञान व्यवहार की भाषा में भले ही ज्ञान कहा जाए, पर परमार्थतः वह अज्ञान है। अज्ञान से कोई भी आदमी प्रकाश की ओर नहीं जा सकता। अज्ञान अंधकार है। अंधकार, अंधकार की ओर ही ले जाता है, प्रकाश की ओर नहीं। काँच प्रतिबिम्व को नहीं पकड़ सकता। बल्ब प्रकाश की अभिव्यक्ति में साधन बनता है, पर उसका फिलेमेंट टूट जाता है तब वह अर्थहीन हो जाता है। दर्पण में बिम्ब प्रतिविम्बित होता है, पर जब कांच अंघा हो जाता है तब वह प्रतिबिम्ब को नहीं पकड़ सकता। इसी प्रकार ज्ञान प्रकाश देता है, पर जब वह मूर्च्छा से आवृत्त होता है, तब वह अंधकार ही दे सकता है, प्रकाश नहीं।
उत्तर-
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18. हमारे सामने प्रकृति का जो समूचा रूप दिखाई पड़ता है या महसूस होता है, वही पर्यावरण है। प्रकृति और मानव का चिरंतन संबंध है। कहा जाता है कि मानव प्रकृति के पाँच तत्वों-भूमि, वायु, जल, अग्नि और आकाश से निर्मित हुआ है। इन्हीं तत्वों के आपसी संतुलन, इनकी एक-दूसरे की अनिवार्यता से बने वातावरण को हम पर्यावरण के रूप में जान सकते हैं। पर्यावरण का दूषित होना ही प्रदूषण है। प्रदूषण की समस्या आज एक गंभीर समस्या है। यह समस्या विज्ञान की देन है। बढ़ते हुए उद्योग-धंधों से यह पनपी है। जब तक शहर अर्धविकसित अवस्था में थे, प्रदूषण का नामोनिशान नहीं था। प्रकृति में संतुलन बना हुआ था। वायु और जल शुद्ध थे, धरती उपजाऊ थी।
उत्तर-
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19. आलोचना (निंदा) सुनने की आदत बनाइए सदैव प्रशंसा सुनकर मन को कमजोर नहीं बनाना चाहिए। आपकी हर जगह प्रशंसा होती रही है, आपने आलोचना का स्वाद चखा ही नहीं तो छोटी सी आलोचना आपका मनोबल गिरा देगी। गलत आलोचनाओं की उपेक्षा करनी चाहिए। आलोचना से सहनशीलता आती है। सहनशीलता से संकल्प शक्ति बढ़ती है। संकल्प शक्ति से जीवन में सफलताएँ मिलती हैं। जिस प्रकार पर्वत वायु के झोंकों से कंपित नहीं होता, उसी प्रकार सहनशील व्यक्ति निंदा और स्तुति से विचलित नहीं होता
उत्तर-
20. जीवन की कला ठूंठ की तरह खड़े रहने में नहीं है। जो पेड़ जवानी में ही सूख जाता है, उसका कारण है कि उसकी जड़ों ने रस लेना बंद कर दिया है। जीवन जीने का सही तरीका है कि उसे विभिन्न रसों को लेने दो। किसी एक विषय में निपुण होने का अर्थ यह नहीं कि तुम खेल के मैदान में न जाओ, व्यापार में सफल होने का अर्थ यह नहीं कि परिवार को भूल जाओ, पुस्तकों के कीड़े मत बनो कि मित्रों की हंसी बुरी लगने लगे। जीवन में विविध रस लेना सीखो कि बुढ़ापा शीघ्र न आ सके, उदासी और निराशा पास न फटके। गले में संगीत, होठों पर मुस्कान, आंखों में हंसी और हृदय में उमंग लेकर जियो।
उत्तर-
21. लोग इसी बात से परेशान रहते हैं कि भाग्य उनका साथ नहीं दे रहा। आप अपने भाग्य का निर्माण स्वयं कर सकते हैं। हातिमताई के विषय में कहा जाता है कि उसे देखकर नदियाँ, खाइयाँ, पहाड़ आदि रास्ता छोड़ देते थे। यह काल्पनिक कहानी नहीं है। हातिमताई ने अपने मन की शक्ति का उपयोग करने की कला जान ली थी। इसलिए उसके मार्ग में आने वाले पर्वत और चट्टान रूपी बाधाएं स्वयं हट जाती थीं। एक कहावत जहाँ चाह वहाँ राह। यदि आप अपने मन से आशंकाएं, भय और निराशा को निकाल देंगे तो आप अपने भाग्य का निर्माण कर सकते हैं।
उत्तर-
22. माता का स्थान संसार के सारे संबंधों में सर्वोपरि है। शिशु की शरीर-रचना माँ की रक्त मज्जा से ही होती है। गर्भावस्था में शिशु की रक्षा माता ही करती है। प्रसव पीड़ा को सबसे बड़ी पीड़ा माना गया है और शिशु धरती हमें अन्न और आश्रय देती है, इसीलिए हम धरती को माता कहते हैं। माँ की महिमा अपार है। इसीलिए को जन्म देने के बाद माता के दुग्ध-पान और अत्यंत सतर्व-सजग अहर्निश देखभाल से ही संतान के जीवन का विकास होता है। केवल दुग्ध-दान देकर गाय भी गौ-माता कहलाती है और हम उसकी पूजा करते हैं। कहा है, 'जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी।'
उत्तर-
23. यदि इच्छा हो, मनोबल ऊंचा हो, तो इच्छित कार्य अवश्य पूरा होता है। जीवन संघर्ष में हर व्यक्ति को अनेक कठिनाइयों और समस्याओं का सामना करना पड़ता है। लेकिन मनोबल ऊंचा रख कर इन कठिनाइयों और समस्याओं पर काबू पाया जा सकता है। आपने देखा होगा कि अनेक निर्धन छात्र अपने ऊंचे मनोबल व परिश्रम के कारण मेरिट में स्थान पाते हैं, जबकि धनवान और साधन सम्पन्न छात्र परिश्रम और मनोबल के अभाव में असफल हो जाते हैं। इसका एकमात्र कारण है-मनोवल का अभाव। संसार में मनोवल हो सफलता का प्रधान घटक है।
उत्तर-
24. प्रायः तुम अपने जीवन की सफलता पर संदेह क्यों करते हो? अगर तुम्हारी कल्पना में शंका और संदेह आने का मार्ग है तो उसे बंद कर दी। दूसरी ओर देखो जिधर से उत्साह, आशा व सफलता की बयार आती है। क्या मृत्यु के डर से किसी ने जीना छोड़ा है? फिर कठिनाइयों व बाधाओं के डर से कार्य न करना कौन-सी बुद्धिमत्ता है। नाविक जानता है, कि लहरें उसकी नाव को चकनाचूर कर सकती हैं, मस्तूल गिर सकता है, उसका पाल तार-तार हो सकता है, फिर भी वह समुद्र में नाव खेने चला जाता है। वह घबराता नहीं उसकी साहसी भुजाओं का मुकाबला करने का बल विशाल समुद्र के पास नहीं है। अतः अपने जीवन मार्ग पर बढ़ो, वरना चिंता और निराशा के सागर में डूब जाओगे।
उत्तर-
25. अनेक विद्यार्थी प्रतिवर्ष परीक्षा में असफल होने पर बुरी तरह निराश हो जाते हैं। प्रत्येक असफल परीक्षार्थी को यह सोचना चाहिए कि परीक्षा में असफल होना कोई अपराध नहीं है, कोई अनहोनी घटना नहीं है, ऐसी कोई बात नहीं जिसके कारण अत्यंत दुखी होकर निराश हो जाएं और कोई गलत कदम उठाएं। है जिसके पर अहंकार की [10:15, 04/02/2022] Rp Amarjit Fine Arts: परीक्षा में असफलता मिलना एक प्रकार की चेतावनी है। विद्यार्थी के लिए कि परीक्षा की तैयारी के लिए जितनी मेहनत की जरूरत थी, उतनी नहीं की गई। अनेक महान् व्यक्तियों ने परीक्षाओं में पहले असफलता का मुंह देखा है फिर भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और अपने निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल हुए। हमें असफलता को स्वीकार करने के लिए भी तैयार रहना चाहिए। जो असफलता आज मिली है, वही आगे चलकर सफलता का कारण बनेगी। ऐसा विश्वास रखना चाहिए।
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26. मानव जीवन को रत्न के समान माना गया है। इस रत्न को चमकाने के लिए विद्यार्थी जीवन को मनुष्य जीवन का स्वर्णिम काल कहते हैं। यह वह समय है जब विद्यार्थी शिक्षा रूपी धन को इकट्ठा करके एक आदर्श नागरिक बनकर देश, जाति, समाज तथा अपना भला कर सकता है। प्राचीन समय में विद्यार्थी शिक्षा प्राप्त करने के लिए गुरुकुलों में जाया करते थे। वहाँ अपने गुरु के पास रहकर मानवीय गुणों को अपनाया करते थे। उनका उद्देश्य जीवन को सर्वगुण सम्पन्न बनाना होता था। आज समय के परिवर्तन के साथ-साथ विद्यार्थी जीवन में भी परिवर्तन आया है। संसार में चारों तरफ विद्यमान (अर्द्धवार्षिक परीक्षा, सितम्बर 2015 )भौतिकता का आकर्षण उसे घेरे हुए हैं।
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27. गाय जब मेरे बंगले पर पहुंची, तब मेरे परिचितों और परिचारकों में श्रद्धा का ज्वार-सा उमड़ आया। उसे लाल सफेद गुलाबों की माला पहनाई गई, केशर-रोली का बड़ा-सा टीका लगाया गया, घी का चौमुख दीया जलाकर आरती उतारी गई और उसे दही-पेड़ा खिलाया गया। उसका नामकरण हुआ गौरा पता नहीं, इस पूजा-अर्चना का उस पर क्या प्रभाव पड़ा परन्तु वह बहुत प्रसन्न जान पड़ी। उसकी बड़ी चमकीली और काली आँखों में जब आरती के दीये की लौ चमकने लगी, तब कई दीयों को भ्रम होने लगा।
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28. आपका जीवन एक संग्राम स्थल है जिसमें आपको विजयी बनना है। महान् जीवन के रथ के पहिए फूलों से भरे नंदन-वन से नहीं गुजरते, कंटकों से भरे बीहड़ पथ पर चलते हैं। आपको ऐसे ही महान् जीवन-पथ का सारथी बनकर अपनी यात्रा को पूरा करना है। जब तक आपके पास आत्मविश्वास का दुर्जेय शस्त्र नहीं है, न तो आप जीवन की ललकार का सामना कर सकते हैं, न जीवन संग्राम में विजय प्राप्त कर सकते हैं और न महान् जीवन के सोपानों पर चढ़ सकते हैं। आप जीवन-पथ पर आगे बढ़ रहे हैं, दुख और निराशा की काली घटाएँ आपके मार्ग पर छा रही हैं, लेकिन आपके हृदय में आत्मविश्वास की वृढ़ ज्योति जगमगा रही है तो इस दुख एवं निराशा का कुहरा उसी प्रकार छूट जाएगा जिस प्रकार सूर्य किरणों के फूटते ही अंधकार भाग जाता है।
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29. साहस की जिंदगी सबसे बड़ी जिंदगी होती है। ऐसी जिंदगी की सबसे बड़ी पहचान यह है कि मनुष्य इस बात की चिंता नहीं करता कि तमाशा देखने वाले उसके विषय में क्या सोचते हैं? जनमत की उपेक्षा करके जीने वाला व्यक्ति दुनिया की सबसे बड़ी ताकत होता है। ऐसे व्यक्ति से ही मनुष्यता को प्रकाश मिलता है। आसपास के लोगों को ध्यान में रखना साधारण जीवन का कार्य है। क्रांति करने वाले अपने उद्देश्य की तुलना न तो पड़ोसी के उद्देश्य से करते हैं और न अपनी चाल को पड़ोसी की चाल देखकर मद्धिम बनाते हैं। वे स्वयं अपने जीवन का पथ निर्धारित करते हैं।
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30. समस्त भारतीय साहित्य की सबसे बड़ी विशेषता रही है, उसमें निहित समन्वय की भावना। इसी मार्मिक भावना के कारण संसार के साहित्य में मौलिकता की पताका फहरा सकता है। इसी विशेषता के कारण उसका अस्तित्व मान्य है। जिस प्रकार धर्म और कला के क्षेत्र में भारत की प्रकृति समन्वय की रही है वैसे ही साहित्य में भी। साहित्य में इसका अर्थ है, सुख-दुख, पाप-पुण्य, उत्थान-पतन व हर्ष-विवाद की विपरीत स्थितियों के समीकरण द्वारा अलौकिक आनंद का अनुभव करना। भारतीयों का ध्येय सदैव जीवन का आदर्श रूप उपस्थित करना रहता है। इसलिए प्राचीन भारतीय साहित्य में दुखात नाटक दिखाई नहीं पड़ते।
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31. दुनिया के विभिन्न देशों के विकास पर विहंगम दृष्टि डालने से यह स्पष्ट हो जाता है कि आज जिस देश ने वैज्ञानिक उपलब्धियों के सहारे अपना औद्योगीकरण कर लिया, उसी को उन्नत देश कहा जाता है। जिस देश में औद्योगीकरण का स्तर नीचा है, वह पिछड़ा हुआ देश कहा जाता है। वैज्ञानिक आविष्कारों और औद्योगीकरण के आधार पर ही किसी देश की प्रगति को आंका जाता रहा है। विज्ञान ने मानव को पूरी तरह बदल दिया है।
उत्तर-
32. यदि हम निरन्तर प्रयत्न करेंगे तो निश्चय ही अपने सभी लक्ष्यों को प्राप्त कर लेंगे; किंतु प्रायः देखा जाता है कि अधिक आशावादी लोग थोड़ा-सा प्रयत्न करके अधिक फल की कामना करने लगते हैं और मनोवांछित फल प्राप्त न होने पर निराश हो जाते हैं। अतः जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए परिस्थितियों के समक्ष घुटने न टेकें, बल्कि हिम्मत से मुकाबला करें। याद रखें, जितना कठोर हमारा परिश्रम होगा, उसका फल उतना ही मीठा होगा।
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33. सौन्दर्य की परख अनेक प्रकार से की जाती है। बाहय सौन्दर्य की परख, समझना तथा उसकी अभिव्यक्ति करना सरल है। जब रूप के साथ चरित्र का भी स्पर्श हो जाता है तब उसमें रसास्वादन की अनुभूति भी होती है। एक वस्तु सुंदर तथा मनोहर कही जा सकती है, परंतु सुंदर वस्तु केवल इंद्रियों को सन्तुष्ट करती है. जबकि मनोरम वस्तु चित्त को भी आनंदित करती है। इस दृष्टि से कवि जयदेव का बसंत चित्रण सुंदर है तथा कालिदास का प्रकृति वर्णन मनोहर है, क्योंकि उसमें चरित्र की प्रधानता है। 'सुंदर' शब्द संकीर्ण है, जबकि 'मनोहर' व्यापक तथा विस्तृत है। साहित्य में साधारण वस्तु भी विशेष प्रतीत होती है तथा उसे मनोहर कहते हैं।
उत्तर-