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अनुच्छेद लेखन

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अनुच्छेद लेखन जिसे अंग्रेजी में Paragraph के नाम से जानते हैं, इस पर हरियाणा बोर्ड और केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की आठवीं, नौवीं और दसवीं कक्षाओं की वार्षिक परीक्षाओं में प्रश्न पूछे जाते हैं जो कि 5 अंक का आता हैI चलिए जान लेते हैं कि अनुच्छेद लेखन क्या है, इसे लिखते हुए किन बातों का ध्यान रखा जाना चाहिए, कितने शब्दों में यह लिखा जाना चाहिएI साथ ही कुछ उदाहरण भी आपको हल करके दिखाए गए हैं और अंत में आपको अभ्यास कुछ विषय दिए गए हैं जिन पर आप लिखने का अभ्यास कर सकते हैंI

अनुच्छेद लेखन क्या है?

भावों और विचारों को संक्षेप में लिखना अनुच्छेद कहलाता है। किसी विषय पर सीमित शब्दों में अधिक-से-अधिक अपने विचार व्यक्त करना ही अनुच्छेद लेखन है। यदि अनुच्छेद को लघु निबंध कहा जाए तो अत्युक्ति न होगी। इसे संक्षिप्त एवं सारगर्भित निबंध कहा जा सकता है।
अनुच्छेद लिखते समय विषय पर अच्छी प्रकार से सोच-विचार करके कुछ बिंदुओं को लिख लीजिए। तत्पश्चात् उन्हे सीमित शब्दों में स्पष्ट कीजिए। सरल एवं व्यहवारिक भाषा में ही अनुच्छेद लिखना चाहिए। अनुच्छेद छोटे-छोटे वाक्यों में लिखना चाहिए ।
एक आदर्श अनुच्छेद में लगभग पंद्रह वाक्य होते हैं । 100 से 150 शब्दों में ही अनुच्छेद लिखा जाना चाहिए। यह कोई निर्धारित सीमा नहीं है। अनुच्छेद किसी भी विषय पर लिखा जा सकता है। नए पाठ्यक्रम में नवीं और दसवीं कक्षाओं में अनुच्छेद-लेखन दिया जाता है। इसलिए आरंभ से ही अनुच्छेद लिखने का अभ्यास करना चाहिए ।


अनुच्छेद-लेखन में ध्यान रखने योग्य बातें:

अनुच्छेद-लेखन में निम्नलिखित बातों की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए:

  1. अनुच्छेद-लेखन के वाक्य छोटे और रोचक होने चाहिए।
  2. अनुच्छेद का प्रत्येक वाक्य एक-दूसरे के अनुरूप होना चाहिए।
  3. अनुच्छेद में उल्लिखित बातें युक्तियों से प्रमाणित करनी चाहिए।
  4. अनुच्छेद में केवल विषय से संबंधित भाव ही व्यक्त करने चाहिए।
  5. अनुच्छेद को अलंकृत भाषा से बोझिल बनाने का प्रयास नहीं करना चाहिए।

माध्यमिक शिक्षा बोर्ड ने अनुच्छेद-लेखन के लिए दो मानदंड तय किए हैं

(क) अनुच्छेद अधिकतम 80 से 100 शब्दों का हो।
(ख) अनुच्छेद दिए गए संकेत-बिंदुओं के आधार पर लिखा जाए।

इसका अर्थ यह है कि छात्रों को अपनी बात संक्षेप में, सुगठित शैली में व्यक्त करनी होगी। सामान्यतः एक पंक्ति में लगभग 10-12 शब्द आते हैं। यदि एक पंक्ति में औसत 10 शब्द मान लें तो अनुच्छेद आठ-दस पंक्तियों से बड़ा नहीं होना चाहिए।
जहाँ तक बात 'संकेत-बिंदुओं' के आधार पर लेखन की है, यह संभवतः इसलिए किया गया है कि छात्र रटकर अनुच्छेद न लिखें। उनमें यह योग्यता विकसित होनी चाहिए कि वे दिए गए संकेत-बिंदुओं पर अपने विचार व्यक्त कर सकें। अतः अनुच्छेद लिखते समय संकेत-बिंदुओं पर अपना ध्यान केंद्रित करें और उन्हीं बिंदुओं को अपने अनुच्छेद में विस्तार दें। एक बार अनुच्छेद-लेखन का कार्य पूरा हो जाए तो उसे ध्यान से पढ़ें और देखें कि संकेत-बिंदु से संबंधित कोई बात छूट तो नहीं गई है।

आइए, उदाहरण के रूप में कुछ अनुच्छेदों का अध्ययन करें:

1. मेरी कक्षा

मैं छठी कक्षा में पढ़ती हूँ। मेरे विद्यालय में प्रत्येक कक्षा के पाँच-पाँच वर्ग हैं। मैं छठी 'ए' में पढ़ता हूँ । इसमें पचास विद्यार्थी हैं । मेरी कक्षा बहुत सुंदर हैं। इसकी दीवारें भाँति-भाँति के चारों और पोस्टरों से सजी हुई है। मैं कक्षा में चार्ट और पोस्टर लगाने और बदलने की मॉनीटर हूँ। मैं सभी विषयों से संबंधित चार्ट लगवाती हूँ। हमारी कक्षा - अध्यापिका कक्षा की स्वच्छता पर बहुत ध्यान देती है। मेरे सहपाठी साफ़-सुथरी यूनिफ़ार्म पहनकर आते हैं। कक्षा को साफ़ रखते हैं कक्षा में हो-हल्ला नहीं मचाते। हमारी कक्षा में जिस विद्यार्थी का जन्म दिन होता है, हम उसे मनाते हैं। ब्रेक में पार्टी करते हैं । उस विद्यार्थी को उपहार देते हैं। हमें ऐसा लगता है कक्षा मानो हमारा परिवार है। ऐसा हमारे विद्यालय की परंपराओं और अनुशासन के कारण हुआ है। हमारी सभी अध्यापिकाएँ और अध्यापक हमें संतान-सा मानते हैं। मेरी कक्षा को इस वर्ष विद्यालय की 'सर्वोत्तम कक्षा' का पुरस्कार दिया गया है। मुझे अपनी कक्षा पर गर्व है।

2. मेरा प्रिय मित्र

दोस्ती करना ही मित्रता है। निःस्वार्थ भाव से परस्पर स्नेह करने को ही मित्रता कहते हैं। मनुष्य सामाजिक प्राणी है। वह चाहता है कि उसका कोई मित्र अवश्य हो, जिससे वह अपने सुख-दुख की बातें बता सके। समीर मेरा मित्र है वह दुख-सुख में सदैव मेरा साथ देता है। वह मेरी कक्षा में ही पढ़ता है तथा मेरे घर से थोड़ी दूर पर ही उसका घर है। मुझमें और समीर में अनेक समानताएँ हैं, अत: हम दोनों में अतीव स्नेह है। समीर अत्यंत गुणी है। वह कक्षा में सदैव प्रथम स्थान प्राप्त करता है तथा क्रिकेट टीम का कप्तान भी है। वह सदाचारी है तथा वह अपने कर्तव्यों से कभी विमुख नहीं होता। वह सदैव मुझे कुमार्ग पर जाने से रोकता है। वह विश्वासघाती नहीं है। मैं अपना सुख-दुख अच्छा बुरा सब उससे कह देता हूँ। वह मेरी बातों को ध्यान से सुनता है और मैं उसकी बातों को। मुझे समीर पर गर्व है!

3. अहिंसा ही परम धर्म है।

दूसरों को कष्ट पहुँचाना, पीड़ा देना 'हिंसा' है। इसके विपरीत, मन से, कर्म से, वचन से किसी प्रकार से भी किसी को कष्ट न देना, पीड़ा न पहुँचना ' अहिंसा' है। भारतवर्ष में बहुत से धर्म हैं। उन सब धर्मों में अहिंसा का महत्वपूर्ण स्थान है। प्रत्येक धर्म में अहिंसा का महत्व स्वीकार किया गया है। भारतीय धर्म और संस्कृति का मूल आधार भी अहिंसा है। महात्मा बुद्ध, महावीर स्वामी, सम्राट् अशोक, महात्मा गांधी जैसे पुरुषों ने अहिंसा के मार्ग पर चलकर संसार को एक ऐसा ज्ञान दिया, जिसके कारण संपूर्ण मानव जाति उनकी सदैव कृतज्ञ रहेगी। अहिंसा में एक महान शक्ति है जिसके द्वारा अधिकार में किए गए लोग सदैव वश में रहते हैं। अत: हमें सदैव अहिंसा का पालन करना चाहिए।

4. पेड़ लगाएँ।

सभ्यता के आदिकाल से ही मनुष्य ने पेड़-पौधों के अस्तित्व को पहचान लिया था और यह भी जान लिया था कि पेड़-पौधे केवल नेत्र को शीतलता प्रदान करने के लिए ही नहीं बल्कि प्राणि जगत के अस्तित्व के लिए भी अत्यंत आवश्यक हैं। इसी कारण ऋषि मुनियों ने भी वृक्षोपासना के लिए मंत्र व पेड़ों की पूजा आदि का विधान बनाया। आज भी भारत के अनेक भागों में विशेष त्योहारों पर पूजा की जाती है। प्रकृति का सतुलन बनाए रखने के लिए पेड़-पौधों का बहुत महत्व है। प्रदूषण को कम करने के लिए यह एक अच्छा उपाय है कि हम अधिक-से-अधिक पेड़ लगाएँ और वायुमंडल को शुद्ध बनाएँ। किसी शुभ अवसर पर जैसे अपने जन्मदिवस, विवाह अथवा विशेष त्योहारों जैसे- होली, दीपावली आदि पर एक पौधा अवश्य लगाएँ। इसी दृढ़ संकल्प के साथ त्योहार मनाएँ और प्रदूषण को कम करने में सहायता करें।

5. परोपकार

दूसरों की भलाई करना ही परोपकार कहलाता है। दूसरों की भलाई के लिए मन से, कर्म से तथा वचनों से जो कुछ भी किया जाता है, वह परोपकार कहलाता है। उदार एवं परोपकारी पुरुष दुखियों का दुख दूर करने में तत्पर होते हैं। शक्तिशाली निर्बलों की रक्षा करते हैं। ये तन, मन और वचनों से जन जन का कल्याण करते हैं। प्रकृति में भी हमें परोपकार की भावना दिखाई देती है। इसी से प्रेरित होकर कबीर दास ने कहा था
वृच्छ कबहुँ नहिं फल भो, नदी न संचै नीर
परमारथ के कारने, साधुन धरा शरीर।
परोपकारी मनुष्य विरले ही होते हैं। वे परोपकार के लिए अपना जीवन उत्सर्ग करने से पीछे नहीं हटते। गांधी, नेहरू राजा शिवि, आदि अनेक महापुरुषों ने अपने जीवन को उत्सर्ग कर दिया। दूसरों को दुख देने से बढ़कर कोई पाप नहीं है तथा दूसरों का परोपकार करने से बढ़कर कोई पुण्य नहीं है।

6. विद्यार्थी जीवन

विद्यार्थी जीवन बड़ा कठोर व दुखदायी होता है, ऐसा प्रायः समझा जाता है। परंतु वास्तव में यदि देखा जाए तो जीवन का सर्वोत्तम भाग विद्यार्थी जीवन ही है। जिन विद्यार्थियों के संरक्षक धन संपन्न होते हैं उनका जीवन सुखमय होता है। परंतु जिन विद्यार्थियों को अपने संरक्षकों से उचित सहायता नहीं मिली है उन्हें अनेक प्रकार के कष्टमय संघर्षों का सामना करना पड़ता है। लेकिन जो संघर्ष से डरता नहीं वही जीवन की परीक्षा में सफल होता है। असली सुख तो कालिदास के अनुसार किसी को भी प्राप्त नहीं है, क्योंकि सुख नाम की वस्तु विद्यार्थी जीवन में आकाश कुसुम एवं गूलर के फूल के समान है। विलासपूर्ण सुखमय जीवन व्यतीत करने वाले को विद्या प्राप्त नहीं होती और जो विद्यार्थी है उसे विद्यार्थी जीवन में सुख कहाँ? जो विद्यार्थी सादा जीवन एवं उच्च विचार अपने अंदर धारण करता है वह निश्चय ही परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त करता है और आगे चलकर वह जीवन में सुख एवं आनंद प्राप्त करता है।

7. सूर्योदय का दृश्य

रात्रि के अंधकार को चीरकर सूर्य पूर्व दिशा से उदित होकर चारों ओर प्रकाश फैला देता है। सूर्य की किरणें वृक्षों की हरियाली को ताज़गी प्रदान करती हैं। पुष्पों को खिलाकर चारों ओर सुगंध फैला देती हैं। अंधकार में डूबे नीले आकाश को रंगों से भर देती हैं। सूर्य जब पूर्व दिशा में क्षितिज से ऊपर उठता है तो लगता है लाल रंग की बड़ी-सी गेंद आकाश में उठती चली आ रही है। सारा आकाश लाल, पीले, सफ़ेद रंग से नहा जाता है। नीले आकाश पर रंगों की बौछार-सी हो जाती है। सारी प्रकृति नए रूप में सज जाती है। पक्षी चहचहाने लगते हैं। तितलियाँ पुष्पों पर मंडराने लगती हैं। भौंरों की गूँज से उपवन संगीतमय हो जाते हैं। सभी अपने-अपने कार्यों में निमग्न हो जाते हैं। रात्रि लोरियों से सबको मीठी नींद में सुला देती है। सूर्य उदय होकर सबको उनके कर्तव्यों का बोध कराता है। प्रातःकालीन दृश्य अलौकिक लगता है। सूर्य का कोमल शांत रूप हृदयों में नई ऊर्जा जागृत कर देता है।

8. दीपावली

दीपों का त्यौहार दीपावली हमारे देश भारत में बड़े हर्षोल्लास के साथ कार्तिक मास की अमावस्या के दिन मनाया जाता है। अंधकार पर प्रकाश की विजय के प्रतीक इस पावन पर्व को कुछ लोग ऋतु परिवर्तन का त्यौहार मानते हैं, जबकि अधिकांश भारतवासी भगवान श्रीराम के आतातायी रावण का अंत कर देवताओं, सपस्वियों और जन-साधारण के लिए हर्ष का प्रकाश लेकर लौटने पर आज भी दीपक मोमबत्तियाँ जलाकर और फूलझड़ियाँ-पटाखे आदि चलाकर खुशियाँ मनाते हैं। यदि दीपावली को ऋतु परिवर्तन संबंधी त्यौहार मानें, तब भी यह बड़ा महत्त्वपूर्ण है। इससे पूर्व पावस ऋतु के कारण चारों ओर कीचड़ गंदगी, मक्खी-मच्छर, कीड़े-मकाड़ों का प्रकोप रहा करता है। पावस ऋतु के बीत जाने पर दीपावली के आगमन से पूर्व ही घर-बार सफाई, रंगाई-पुताई करके सारे वातावरण को स्वच्छ बना दिया जाता है। शरद ऋतु होने के कारण प्राकृतिक वातावरण भी नया एवं ताजा होकर उजाले का संदेश देने लगता है। इस प्रकार हर दृष्टि से दीपावली को अंधकार पर उजाले की विजय का शुभ पर्व उचित ही माना जाता है। इस पावन पर्व पर व्यापारी वर्ग तो लक्ष्मी पूजन कर नए खाते आरंभ करते ही हैं, घर-घर में भी लक्ष्मी पूजन कर, मिठाई खा खिलाकर उत्साहपूर्वक नववर्ष का आरंभ किया जाता है। फूलझड़ियों पटाखों के चलने के रूप में हम सभी के मन का उल्लास और उत्साह फूट पड़ा करता है। इस पावन पर्व के साथ जुड़ी बुराइयाँ त्यागकर हमें इसे पवित्रता के साथ मनाना चाहिए।

9. दहेज प्रथा: एक सामाजिक अभिशाप

दहेज प्रथा वास्तव में नव-विवाहित वर-वधू को नई गृहस्थी बसाने के लिए शुभ कामनाओं के साथ कुछ उपहार देने के रूप में आरंभ हुई थी। आत्मीयजन, मित्र-बंधु, गली-मुहल्ले और गाँव-खेड़े के सभी लोग इस प्रकार के उपहार दिया करते थे। इससे वर-वधू पक्ष पर बोझ न पड़ सरलता से एक गृहस्थी बस जाया करती थी। किंतु बाद में धनिकों के दिखावा करने की प्रवृत्ति ने एक अच्छी-भली प्रथा को बिगाड़ दिया। आज तो यह प्रथा वास्तव में एक सामाजिक अभिशाप बन चुकी है। स्वार्थी और लालची लोग कन्या पक्ष से दान-दहेज के नाम पर इतनी अधिक माँग करने लगे हैं कि आम और मध्यवर्ग के लिए उसे पूरा कर पाना संभव नहीं होता। तब कई कन्याएँ आजीवन कुँआरी रह जाती हैं, कई स्वयं को बोझ मानकर आत्महत्या तक कर लेती हैं। कइयों की शादी हो जाने पर भी दहेज की माँग पूरी न होने पर उन्हें पीड़ित तो किया ही जाता है, जिंदा तक जला दिया जाता है। इस प्रकार कन्या और उसके माता-पिता के लिए दहेज प्रथा एक अभिशाप बन चुकी है। यद्यपि सरकार ने इस कुरीति को रोकने के लिए दहेज रोधक कानून लागू किए हैं, तथापि जन सहयोग और जागरूकता के अभाव में इनका वास्तविक साभ नहीं मिल पाया है। इस अभिशाप से मुक्ति पाने का एक ही उपाय है कि युवा वर्ग दृढ़ निश्चय कर ले कि दहेज से देकर कतई विवाह नहीं करेंगे। इसके अतिरिक्त और कोई कारगर उपाय नहीं है।

10. बढ़ती महंगाई

यह तो सभी जानते हैं कि आज आम आदमी का जी पाना दिन-प्रतिदिन कठिन होता जा रहा है। पहले कहा जाता था कि दाल-रोटी खाकर जी रहे हैं, पर आज घर-परिवार के लिए दाल-रोटी जुटा पाना लगातार कठिन होता जा रहा है। अमीर-गरीब, मध्य वर्ग सभी को हालत ढंग और खस्ता होती जा रही है, लोग एक-दूसरे से कटने लगे हैं। कहीं खिलाना- पिलाना न पड़ जाए, यह सोचकर आज आदमी किसी अतिप्रिय को सामने देखकर भी अनदेखा कर देता है। रिश्वत, भ्रष्टाचार, कालाबाजार लगातार बढ़ रहा है। इस सबके लिए व्यक्ति का अधिकाधिक स्वार्थी होते जाना हो जिम्मेदार है ही, महँगाई भी बहुत अधिक जिम्मेदार है। स्वार्थ पूर्ति के लिए दूसरों का हक मारना, काला बाजार, जमाखोरी की आदत, जनसंख्या के अनुपात में उत्पादन कम होना, युद्धों और अराजकता के भय से मुक्त होने के लिए शस्त्रों पर खर्च बढ़ जाना, कृषि योग्य भूमि पर पस्तियाँ बस जाना प्रकृति से नाता टूट जाना जैसे महँगाई बढ़ने के कई कारण है। इस निरंतर बढ़ती हुई महंगाई के भूत से छुटकारा पाने के लिए यह अत्यावश्यक है कि जनसंख्या और उत्पादन में संतुलन बनाए रखा जाए जनसंख्या वृद्धि पर काबू रखा जाए आवश्यक वस्तुओं की पूर्ति कर पाने वाली योजनाएँ बनाई जाएँ जमाखोरी, चोरवादारी मुद्रास्फीति को कठोरता से रोका जाए, सहज मानवीय और आपसी सहयोगपूर्ण दृष्टिकोण विकसित किया जाए। प्रकृति के साथ फिर से संबंध जोड़ और कृषि कार्य के योग्य भूमि की रक्षा करके ही महंगाई का निराकरण संभव हो सकता है।

11. विद्यार्थी के कर्तव्य

शिक्षा काल में अच्छा विद्यार्थी और भविष्य का अच्छा नागरिक बनने के लिए हर विद्यार्थी को कई प्रकार के विशेष कर्तव्यों का पालन करना आवश्यक है। विद्यार्थी को अपने मन मस्तिष्क के विकास और तरह-तरह के ज्ञान पाने के लिए पढ़ना-लिखना पड़ता है, जबकि शारीरिक विकास के लिए व्यायाम एवं खेलकूद करना भी अत्यावश्यक है। इसके साथ ही विद्यार्थी को समय का पाबंद रहना भी उसका कर्तव्य माना गया है। इस प्रकार समय पर जागना पड़ना लिखना, खाना-पीना, खेलना-कूदना, विद्यालय और घर के कामकाज करना आदि हर में सकारखना आवश्यक होता है। अपनी आत्मा के विकास और विस्तार के लिए हर विद्यार्थी का कर्तव्य हो जाता है कि यह पाठ्य पुस्तकों के अतिरिक्त भी अच्छी-अच्छी पुस्तकों, पत्र-पत्रिकाओं आदि का अध्ययन करता रहे। इस काल में व्यक्ति ज्ञानरूपी जितना भी धन अर्जित कर लेता है, वही आगामी जीवन में काम आता है। अस्तु, संयम का पालन करते हुए अनुशासित बनकर रहना भी विद्यार्थी का कर्तव्य माना गया है। इसी प्रकार साफ़-सुथरे रहना, सत्संगति करना, बुरों और बुराइयों से बचना, सभी की सहायता के लिए तत्पर रहना, बड़ों के प्रति आदर और विनम्रता छोटों के प्रति स्नेह-भाव, समवयस्कों के प्रति अपनापन जैसी बातें भी कर्तव्य के अंतर्गत ही आती है। सत्य बोलना, धर्म-कर्म पर आचरण करना, सत्कार्य के लिए सदैव तत्पर रहना, देश- जाति के भीतरी बाहरी शत्रुओं पर रखना अन्य सभी नागरिकों के समान विद्यार्थी का भी कर्त्तव्य होता है। विद्यार्थी को वास्तव में शिक्षा का अंग मानते हुए उपयुक्त सभी कार्यों के पालन के प्रति सावधान रहना चाहिए। उसे हर बात पर गहरी नजर रखते हुए शिक्षा पाने के अपने परम और पहले कर्तव्य का निर्वाह करना चाहिए।

12. मेरा भारत महान

कश्मीर से कन्याकुमारी तक और गुजरात से अरुणाचल प्रदेश तक फैला मेरा देश भारत विश्व का सातवाँ बड़ा देश है। उत्तर में पर्वतराज हिमालय भारत के उन्नत भाल पर मुकुट के समान सुशोभित है। दक्षिण में हिंद महासागर इसके चरणों को धोकर धन्य हो रहा है। गंगा जैसी पावन सलिला इसी धरती पर प्रवाहित हो रही है। ऐसी ही अनेक नदियाँ इस धरती को सींचकर हरा-भरा बनाती हैं। मेरे देश की भौगोलिक विशेषताएँ इसे और भी विशिष्ट बना देती हैं। यहाँ कहीं पहाड़ है तो कहीं वन, कहीं विस्तृत मरुस्थल है तो कहीं समतल उपजाऊ मैदान। मेरे देश का प्राचीन इतिहास गौरवपूर्ण है। अनेक वीरों और तेजस्वी ललनाओं ने इसकी महिमा को उजागर किया है। मेरे देश में उन्तीस राज्य हैं और छह केंद्र शासित प्रदेश हैं जहाँ विभिन्न भाषाएँ बोली जाती हैं। एक अरब से भी अधिक आबादी वाला यह देश सत्य, अहिंसा, प्रेम, सौहार्द्र एवं सहिष्णुता के आदर्शों का पालन करने वाला है। आओ, हम सब मिलकर इस धरती को, अपनी जननी को नमन करें।

13. मोबाइल का प्रयोग जरा ध्यान से

-बिंदु • आधुनिक तकनीक • उपयोग और सावधानियाँ • मोबाइल शेयर से बचें आवश्यकता के अनुसार व्यक्ति अपनी जरूरतों का सामान जल्द ही जुटा लेता है। उसे खोजने में और उसे अपनाने में असे तनिक भी देर नहीं लगती है और न ही कुछ सोचना पड़ता है। कहने का अर्थ है कि आवश्यकता को पूरा करने के लिए वह असंभव प्रयास भी करने लगता है। आज से पहले किसी ने सोचा भी नहीं था कि प्रत्येक व्यक्ति के हाथ में मोबाइल नज़र आएगा। आधुनिक तकनीक दिन-प्रतिदिन बहुत ही तेजी से बढ़ती जा रही है। नित नए-नए आविष्कार हो रहे हैं। अतः इनके सकारात्मक प्रयोग और प्रयोग के दौरान की जाने वाली सावधानियों से प्रत्येक व्यक्ति को अवगत रहना चाहिए। मोबाइल के संबंध में भी यही बात लागू होती है। मोबाइल को शेयर करने से वायरस आसानी में एक-दूसरे के पास पहुँच जाता है। मोबाइल का लापरवाहीपूर्ण प्रयोग ज्यादातर युवा वर्ग में दिखाई देता है। अपनी मौज-मस्ती के दौरान एक दोस्त दूसरे दोस्त को मोबाइल पकड़ाने में बिलकुल ही नहीं झिझकता। इस प्रकार एक हाथ का वायरस दूसरे के हाथ में जाने में ज़रा भी समय नहीं लगाता। आज पूरे देश में इस प्रकार के वायरस का ख़तरा मंडरा रहा है। मोबाइल शेयर करना मतलब बैक्टीरिया शेयर करना है। विशेषज्ञों का कहना है कि मोबाइल शेयर करने से 'एयर बोर्न-इंफेक्शन' और बैक्टीरिया आसानी से ट्रांसफर हो सकते हैं। किंतु इस ओर व्यक्ति का ध्यान जाता ही नहीं। अतः जहाँ तक हो सके मोबाइल को शेयर करने से बचें। अगर कभी शेयर करना भी पड़े तो स्पीकर पर बात करें। मोबाइल को सेनेटेलाइज़र से साफ़ करें। यदि वह भी संभव न हो तो रूमाल से साफ़ करें। रूमाल को भी बाद में धोकर साफ़ करें। इस प्रकार की सावधानियों से आप स्वयं तो बचेंगे ही साथ ही अपने रिश्ते तथा प्यार को भी हमेशा बचाकर रख पाएँगे। मोबाइल शेयर के साथ-साथ स्वच्छता को भी शेयर करना न भूलें।

14. कंप्यूटर: एक अनिवार्य आवश्यकता

संकेत-बिंदु:

आज का युग कंप्यूटर का युग है, इस बात में कोई भी अतिशयोक्ति नहीं है। कंप्यूटर ने एक नयी संस्कृति को ही ने जन्म दे दिया है। आज से कुछ साल पहले तक माँ-बाप बच्चे को अपने परंपरागत सांस्कृतिक मूल्यों के रंग में रँगने की कोशिश करते थे, पर आज थोड़ा-सा बड़ा होते ही बच्चा कंप्यूटर की दुनिया में साँस लेना प्रारंभ कर देता है और 'कंप्यूटर-संस्कृति' में इस कदर रँग जाता है कि कंप्यूटर के अभाव में उसे जीवन निरर्थक लगने लगता है। इसमें कोई दो राय नहीं कि कंप्यूटर मानव द्वारा निर्मित 'मशीनी मस्तिष्क' है जो हर समस्या का पलक झपकते ही समाधान प्रस्तुत कर देता है। मनुष्य की जीवन-यात्रा को सुगम बनाने में इस 'इलेक्ट्रॉनिक मस्तिष्क' की भूमिका अनिर्वचनीय है। जीवन का कोई भी क्षेत्र हो बैंक, रेल-सेवा, विमानों का संचालन, सैटेलाइट सेवा, टेलीफ़ोन, शिक्षा आदि सभी क्षेत्रों में तो बहुत समय से कंप्यूटर अपनी सेवाएँ देता आ रहा है। पर आज कंप्यूटर ने आम आदमी के घर में बाजार को लाकर खड़ा कर दिया है। कोई भी चीज़ आपको खरीदनी हो, किसी भी चीज के बारे में जानकारी प्राप्त करनी हो, बस कंप्यूटर की एक 'की' को दबाने की ज़रूरत होती है। आज से 20-25 वर्ष पूर्व तक हमारे देश में लोग स्वास्थ्य के प्रति इतने जागरूक नहीं थे। पर गत कुछ वर्षों में कंप्यूटर पर इंटरनेट के जरिए लोगों को जो स्वास्थ्य संबंधी जानकारियाँ मिलती हैं. उन्होंने लोगों को स्वस्थ जीवन जीने, स्वास्थ्यवर्धक भोजन करने आदि की ओर प्रेरित किया है। कंप्यूटर का एक दुर्बल पक्ष भी है कि इसके समक्ष अधिक समय बिताने वाली आज की पीढ़ी के स्वास्थ्य पर, आँखों पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है। पर यह दोष कंप्यूटर का कम, उसका प्रयोग करने वाले का अधिक है। अतः कंप्यूटर के गुलाम न बनें, कंप्यूटर को अपना गुलाम बनाएँ जिससे मोटापा, आँखों के रोग, शुगर, तनाव, स्पोंडेलाइटिस आदि रोगों को अपने से वरदान ही तो है विज्ञान

15. ग्लोबल वार्मिंग : सबकी चिंता का विषय

संकेत-बिंदु:

समाधान ‘ग्लोबल वार्मिंग' का तात्पर्य भूमंडल के दिन-प्रतिदिन बढ़ते तापमान से है। गत कुछ वर्षों में ग्रीष्म ऋतु भयंकर से भयंकर होती जा रही है। वायुमं का तापमान यदि इसी प्रकार से बढ़ता रहा तो मानव जीवन का क्या होगा, कुछ कहना कठिन है। आज जनसामान्य की चिंता का विषय बन गया है- 'ग्लोबल वार्मिंग'। ग्लोबल वार्मिंग का प्रमुख कारण है सूर्य के चारों ओर व्याप्त 'ओज़ोन लेयर' का क्षरण। ओजोन की परत सूर्य के ताप को रोकने का काम करती है, लेकिन जब से ओजोन लेयर में दरार पड़ी है पृथ्वी का तापमान दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है और वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा में वृद्धि हो रही है। ओजोन लेयर वस्तुतः सूर्य से आने वाली अल्ट्रावायलेट किरणों को रोकता है परंतु इन दिनों क्लोरा-फ्लोरो-कार्बन के कारण ओजोन की परतों में दरारें पड़ने लगी हैं। यदि यह प्रक्रिया सीमा लाँघ गई तो पृथ्वी पर प्राकृतिक आपदाओं में वृद्धि हो जाएगी; जैसे-बाढ़े आएँगी, सूखा पड़ेगा, ग्लेशियर पिघलना प्रारंभ हो जाएँगे और समुद्र के जल का स्तर बढ़ जाएगा, जिससे समुद्रतट के इलाके पानी में डूब सकते हैं। अत: ग्लोबल वार्मिंग के खतरे को टालने के लिए विश्व के सभी देशों को मिलकर प्रयास करने होंगे। वैज्ञानिकों ने कहा है कि महासागरों में पानी की सतह पर कुछ छोटे-छोटे जीव तैरते रहते हैं। इनको 'फ्लेक्ट्स' या 'प्लवक जीव' कहते हैं। इनमें कार्बन डाइऑक्साइड को सोखने की असीम शक्ति होती है। ये जीव वायुमंडल की कार्बन-डाऑक्साइड को सोखने में मनुष्य की मदद कर सकते हैं। इसके अलावा प्रत्येक देश को कम ऊर्जा वाले उपकरणों के प्रयोग पर बल देना चाहिए।

16. पुस्तकों से दोस्ती
या
किताबें मेरी सच्ची साथी

संकेत-बिंदु:

-पुस्तकें दोस्त कैसे?
-व्यक्ति के लिए पथप्रदर्शक
-सामाजिक परिवर्तन में पुस्तकों की भूमिका

पुस्तकों को यदि कहा जाए कि 'तुम्ही हो बंधु, सखा तुम्हों हो' तो अतिशयोक्ति नहीं होगी क्योंकि पुस्तकें हमारे जीवन कमी रत्नों से भी ज्यादा महत्त्वपूर्ण स्थान रखती हैं। ये हमारे मन-मस्तिष्क को प्रकाशित करती हैं। लोकमान्य लिक का कहना तो यहाँ तक था कि "मैं नरक में भी पुस्तकों का स्वागत करूंगा क्योंकि इनमें वह शक्ति है कि होंगी वहाँ अपने-आप ही स्वर्ग बन जाएगा।" श्रेष्ठ और उच्चतम दर्जे की पुस्तकें मनुष्य, समाज तथा राष्ट्र का मार्गदर्शन करके उन्नति की ओर अग्रसर करती हैं। किसी भी युग तथा देशकाल को समझने में पुस्तकें ही आम् भूमिका निभाती हैं। आज हम पुस्तकों के द्वारा ही अपने इतिहास को भली-भाँति जान पाते हैं। किसी राष्ट्र का उत्थान या पतन उसके साहित्य से ही पता चलता है। किसी भी विद्वान पुरुष के आचार-विचारों को हम पुस्तकों के माध्यम से पढ़कर उसे अपने जीवन में उतारने के लिए प्रेरित होते हैं। श्रेष्ठ पुस्तकें व्यक्ति के लिए पथप्रदर्शक बनकर डर समस्या से उबरने में सहायक सिद्ध होती हैं। इस प्रकार पुस्तकों का निरंतर अध्ययन हमें समाज में परिवर्तन लाने में सहायता तथा प्रेरणा देता है. जन-जागृति में अहं भूमिका निभाता है। हमारे धार्मिक ग्रंथ तथा साहित्यिक रचनाएँ निराशा से घिरे जीवन में, नव-ज्योति के जागरण का काम करते हैं। अतः पुस्तकें हमारी सच्ची संगी-साथी हैं। इन पर आँख मूंदकर पूरा भरोसा किया जा सकता है। बस याद रहे कि पुस्तकों को आड़ में हम किसी गलत या अश्लील साहित्य को अपना दोस्त न मानने लगें। इसमें सतर्कता की जरूरत है। पुस्तकें ऐसी मित्र हैं जो बिना किसी शिकायत के हमारे साथ सदैव निःस्वार्थ भाव से हमारा मार्ग प्रशस्त करने के लिए अग्रसर रहती हैं और हमें ज्ञान रूपी अमृत से सराबोर करती रहती हैं।

17. जनसंख्या वृद्धि विकट समस्या
या
बढ़ती जनसंख्या एक गंभीर समस्या

संकेत-बिंदुसबसे बड़ी समस्या जनसंख्या वृद्धि जनसंख्या वृद्धि के कारण एवं दुष्परिणाम उपाय कहने को तो हमारे देश में सब कुछ है हमारी धरती में तेल, कोयला, लोहा, अन्य धातु, संसाधन सभी कुछ ये है। पर फिर भी हम विकासशील देशों की श्रेणी में आते है। इसका सबसे बड़ा कारण है- जनसंख्या वृद्धि। देश की आजादी के बाद इसी समस्या के कारण हम गरीबी, बेरोजगारी तथा अन्य समस्याओं से उबर नहीं पाए हैं। जनसंख्या के अनेक कारण है। उनमें सबसे बड़ा कारण है लोगों का अशिक्षित होना अशिक्षित होने के कारण ग्रासकर ग्रामीण लोग अपने बच्चों का विवाह छोटी उम्र में कर देते हैं और फिर संतान को ईश्वर का बादान मानकर जनसंख्या वृद्धि में सहयोग करते रहते हैं। जनसंख्या वृद्धि का दुष्परिणाम यह होता है कि देश लोगों की संख्या के अनुरूप खाद्यान और उद्योग धंधे उपलब्ध नहीं करा पाता और धीरे-धीरे आर्थिक प्रगति बाधित हो जाती है। जनसंख्या वृद्धि को रोकने के लिए सरकार ने अनेक प्रयास किए हैं। 'परिवार नियोजन का कार्यक्रम राष्ट्रीय स्तर पर चलाया गया है। सड़के और लड़कियों की विवाह की आयु भी क्रमशः 21 और 18 वर्ष की गई है। पर अकेले सरकार के करने से कुछ नहीं होता जब तक लोगों की मानसिकता नहीं बदलेगी सरकारी नियम कानून कुछ नहीं कर पाएंगे। इसके लिए जन-जागरण तथा शिक्षा के प्रचार और प्रसार की अधिक आवश्यकता है।

18. न दहेज दें, न दहेज लें

संकेत-बिंदु:

भारतीय समाज में दहेज एक ऐसा अभिशाप है जो भारतीय सभ्यता के माथे का कलंक है। दहेज एक ऐसी बुराई है जिसका भय माता पिता को अपनी पुत्री के जन्म से ही सताने लगता है। इस भय से ग्रसित अनेक माँ-बाप गर्भ में ही बेटियों की बलि चढ़ा देते हैं। कभी दहेज की प्रथा राजा-महाराजाओं और धनाढ्य लोगों के यहाँ शुरू हुई थी जहाँ से अपनी पुत्री के विवाह को शान-शौकत से करते थे और उपहारस्वरूप धन दौलत, जागीर पशु भेंट में देते थे। उपहार देना उनका 'स्टेट्स सिंबल' था। लेकिन यही परंपरा आगे चलकर एक बाध्यता बन गई लड़के के माता-पिता ने यह समझ लिया कि यदि कोई लड़की वाला अपनी लड़की की शादी उनके बेटे के साथ करना चाहता है तो उसे वह सब खर्च उठाना होगा जो लड़के को पढ़ाई-लिखाई और लालन-पालन पर उसके माता-पिता ने किया है। इस तरह विवाह, विवाह न होकर व्यापार बन गया है। बेचारे लड़की के पिता को दहेज के लिए क्या नहीं करना पड़ता पर तक गिरवी रखना पड़ता है पर तड़के के घर वालों की संतुष्टि नहीं होती। ये अपनी पुत्र-वधू पर अत्याचार करते है, मारते पीटते है। बधुओं को जलाए जाने की शर्मनाक घटनाएँ जितनी हमारे देश में होती है ये देश की गर्दन पूरे vishva में झुका देती है। इस समस्या का यही समाधान है कि लड़कियों को पढ़ा लिखाकर उन्हें अपने पैरों पर खड़ा किया जाए, लड़कियाँ संकल्प से कि चाहे कुछ भी हो जाए थे उस परिवार में किसी भी हालत में शादी नहीं करेंगी जहाँ है से दहेज की माँग आ रही है। इसके अलावा आज के युवकों को भी यह संकल्प लेना होगा कि उसे अपने माता-पिता का जितना भी विरोध सहना पड़े. वह विवाह में दहेज नहीं लेगा। दहेज के इस अभिशाप से समाज तभी मुक्त हो सकता जब हर आदमी यह संकल्प करे कि न वह दहेज देगा और न लेगा।

19. भारत की सांस्कृतिक एकता

संकेत-बिंदु:

हमारे पर्व और त्योहार एकता के संदेशवाहक प्रश्न उठता है कि 'संस्कृति' से क्या तात्पर्य है? संस्कृति की परिभाषा देना थोड़ा कठिन है पर मनुष्य के वे गुण उसकी मानसिक प्रवृत्ति, रहने-सहने के तौर-तरीके आदि को दर्शाते हैं उसकी संस्कृति की ओर संकेत करते हैं। 'संस्कृति' एक मूल्य है जो जीवन को परिष्कृत करने का काम करती है। जहाँ तक बात भारत की है, भारत की संस्कृति की जड़ें इतिहास में बहुत गहरी हैं। हमें हमारे सांस्कृतिक मूल्य हमारी परंपराओं से विरासत में मिले हैं। हमारी संस्कृति का सबसे महत्त्वपूर्ण तत्त्व है- अनेकता में एकता। जाति, धर्म, भाषा, रंग आदि की जितनी भी विविधताएँ हो सकती हैं; सब हमारे देश का अंग रही हैं और इन सबको एकता के सूत्र में पिरोकर चलने वाली जो चीज़ है, वही है हमारी भारतीय संस्कृति। तमाम तरह की विविधिताओं के बीच प्रेम, भाईचारा, सबके प्रति सम्मान, आदर ये ही तो वे गुण हैं जो हमें हमारी संस्कृति ने दिए हैं। इन सांस्कृतिक मूल्यों को उजागर करने में सबसे प्रमुख भूमिका हमारे पर्वों एवं त्योहारों की है। त्योहार चाहे जिस धर्म और जाति का हो, पूरा देश उसे उल्लास और उत्साह के साथ मनाता है। होली, दिवाली, ईद, क्रिसमस, पोंगल या लोढ़ी कोई भी त्योहार क्यों न हो, अलग-अलग संप्रदाय के लोगों को परस्पर निकट खींच लाते हैं और यही गुण हमारी एकता और अखंडता का परिचायक बनकर हमारी संस्कृति को विश्व मंच पर प्रतिष्ठित कर देता है।

20. पर उपदेश कुशल बहुतेरे करनी कथनी

संकेत-बिंदु:

दूसरों को उपदेश देना कितना आसान है। जब भी किसी की बात बुरी लगे उपदेश देना चालू। यह आदमी की आम है पर उन्हीं बातों को स्वयं करना पड़े तो लोग उन उपदेशों को भूल जाते हैं। खासकर हर बढ़ा अपने से छोटे नसीहत भरा उपदेश देने से नहीं चूकता लेकिन जब अपनी बारी आती है तब सारे मूल्य धरे के धरे रह जाते है। ऋष्य ने सारे नैतिक मानदंड केवल दूसरों के लिए बनाए हैं जब बात अपनी आती है तो टॉय टॉय फिस हो जाता पूरे देश की मानसिकता ही कुछ ऐसी बन गई है। हर युवक चाहता है कि वह जितनी हो सके मौज-मस्ती करे, कियों से संबंध बनाए लेकिन जब बात अपने घर की आ जाती है, अपनी बहन आ जाती है तो वह बर्दाश्त कर पाता। इन दोहरे मानदंडों में जीने वाली आज की पीढ़ी इसीलिए कुंठित नदर आती है। ऐसे व्यक्ति अंदर से काली होते हैं। यही हाल आज के नेताओं का है। ये बड़े बड़े भाषण देते हैं आदर्श की बातें करते हैं और स्वयं पाप के गड़े में डुबकियाँ लगाते हैं। मनुष्य को चाहिए कि वह अपनी कथनी और करनी में एकत्व स्थापित करे। जिस काम को यह दूसरों से चाहता है उन्हें पहले अपने ऊपर लागू करके देखे। जिन बातों की अपेक्षा हम दूसरों से करते हैं उन्हें आचरण में वालें तभी हम दूसरों से उन कामों को करा सकेंगे।

21. बिन पानी सब सून

संकेत-बिंदु:

दोहे के माध्यम से रहीम लोगों को 'पानी' का महत्व बता रहे हैं। यहाँ 'पानी' शब्द के तीन अर्थ है, जो मोती. मनुष्य और चूने के लिए प्रयुक्त हुए हैं। मोती के संदर्भ में पानी का अर्थ उसकी 'चमक' मनुष्य के संदर्भ में उसका 'सम्मान' तथा 'चूना' के संदर्भ में 'जल' का अर्थ है। यदि इन तीनों का पानी चला जाए तो तीनों बेकार हो जाते हैं। बहरहाल मनुष्य का पानी उसकी इसत सम्मान और प्रतिष्ठा है। इसलिए उसे कभी ऐसे काम नहीं करने चाहिए जिनसे उसके सम्मान पर आँच आए। 'पानी' का गुण बहना है। अतः यदि उसे संभालकर नहीं रखा जाता है है तो वह बह जाता है। ठीक ऐसे ही मनुष्य की प्रतिष्ठा, उसका सम्मान तभी तक उसके पास है जब तक वह उसको सँभालकर कार्य करता ti ही वह अशोभनीय एवं अनैतिक कार्य करना शुरू करता है उसका 'पानी' चला जाता है। अतः मनुष्य को चाहिए अपने सम्मान रूप 'पानी' को सँभालकर रखे क्योंकि एक बार पानी चला गया तो सब शून्य है।

22. मेरा देश / हमारा प्यारा देश

संकेत-बिंदु:

शायद ही कोई होगा जिसे अपने देश से प्यार न होगा। हम भारतीय हैं, इस बात का हमारे प्रत्येक नागरिक को गर्व होना चाहिए। हमारा देश विश्व की प्राचीनतम संस्कृति वाला देश है। यह आर्यों का देश है और सारे विश्व ने यह स्वीकार किया है कि आर्य यहीं से पूरे विश्व में फैले। हमारी भाषा भी विश्व की सबसे प्राचीनतम भाषा है। भाषा वैज्ञानिक मानते हैं कि यूरोप की समस्त भाषाओं का विकास वैदिक संस्कृत से ही हुआ है। हमारा वैदिक साहित्य यह बताता है कि यहाँ के ऋषि-मुनि ज्ञान और आध्यात्मिकता की पराकाष्ठा तक पहुँच गए थे। एशिया और विश्व के कई देशों में जिस बौद्धधर्म का प्रचार एवं प्रसार हुआ, वह इसी देश की देन है। आज सारे विश्व में 'भगवद्गीता' को जो सम्मान मिला है, इस बात से पता चलता है कि विश्व की अधिकांश भाषाओं में उसके अनुवाद हो चुके हैं। हमारी संस्कृति का तो कहना ही क्या है? यह एक ऐसी संस्कृति रही है जिसने तोड़ना नहीं जोड़ना सिखाया है। सभी धर्मों को स्वीकृति देते हुए 'विश्वबंधुत्व' की ऐसी भावना विश्व की किसी अन्य संस्कृति में दिखाई नहीं देती। आज के संदर्भ में देखें तो देश विकास के पथ पर अग्रणी है। आज विश्व की महान शक्ति के रूप में हम उभर रहे हैं और सारा विश्व हमसे हाथ मिलाने के लिए आगे आ रहा है। हम धन्य हैं इस धरती की माटी में जन्म लेकर।

23. राष्ट्रीय ध्वज: राष्ट्र का गौरव

प्रत्येक देश के गौरव का प्रतीक होता है उस देश का राष्ट्रीय ध्वज राष्ट्रीय ध्वज राष्ट्र के सम्मान का सूचक होता है। इसीलिए राष्ट्र-ध्वज के सम्मान के लिए हर देश के नागरिक अपने प्राणों का बलिदान तक कर देते हैं। जब भी अंतर्राष्ट्रीय गोष्ठियाँ या कार्यक्रम होते हैं, उस देश के प्रति सम्मान प्रदर्शित करने के लिए उनके राष्ट्रध्वज अवश्य फहराए जाते हैं। हमारे देश का राष्ट्रध्वज है हमारा प्यारा तिरंगा झंडा। इसके नाम में ही 'तिरंगा' शब्द जुड़ा हुआ है अर्थात् यह तीन रंगों वाला है। सबसे ऊपर का रंग है- केसरिया, बीच का रंग 'सफ़ेद' है और नीचे का रंग हरा है। बीच में सफ़ेद रंग के ऊपर अशोक चक्र बना हुआ है। प्रारंभ में इसमें अशोक चक्र के स्थान पर 'चरखा' था। बाद में चरखे के स्थान पर 'अशोक चक्र' को स्थान दिया गया। हमारे 'तिरंगे' के तीनों रंगों के अपने-अपने अर्थ हैं। 'केसरिया रंग' त्याग और शौर्य का प्रतीक है जो सारे विश्व को यह संदेश देता है कि यह देश 'त्याग और वीरता' के लिए अपने प्राण भी न्योछावर कर सकता है। झंडे का 'सफ़ेद' रंग शांति एवं सौहार्द का प्रतीक है जो यह बताता है कि हम प्रेम, भाईचारे की भावना और विश्व की शांति में विश्वास रखते हैं। झंडे का 'हरा' रंग हरियाली का प्रतीक है जो भारत की खुशहाली की ओर संकेत करता है। झंडे के मध्य अशोक चक्र का भी अपना अर्थ है। यह चक्र भारत की प्रगति एवं लोकतंत्र का प्रतीक है। जब-जब हमारे राष्ट्रीय पर्व, जैसे- गणतंत्र दिवस, स्वतंत्रता दिवस आते हैं तब तब इस झंडे को फहराया जाता है। स्वतंत्रता दिवस के समय देश के प्रधानमंत्री लालकिले पर और गणतंत्र दिवस के अवसर पर महामहिम राष्ट्रपति राजपथ पर इंडिया गेट के पास जहाँ वे तीनों सेना की सलामी लेते हैं, इस ध्वज को फहराते हैं। हमारे देश का प्रत्येक देशवासी अपने राष्ट्रीय ध्वज को शत्-शत् नमन करता है।

24. यदि मैं करोड़पति बन जाऊँ

संकेत-बिंदु:

'करोड़पति' होने की उक्ति उन दिनों की है जब लोगों की आय सैकड़ों में हुआ करती थी और व्यक्ति 'करोड़पति' होने का स्वप्न देखता था। आज तो अधिकांश मध्यवर्गीय लोग जिनके शहरों में अपने घर हैं, वे 'करोड़पति' ही हैं। वस्तुत: 'करोड़पति' होने का अर्थ है- 'धनाढ्य' होना, वरना आज किसी को एक-दो करोड़ रुपये मिल भी जाएँ तो भी वह उन सब कार्यों को नहीं कर सकता है जिन्हें वह करना चाहता है। मेरी भी इच्छा थी कि मेरे पास भी इतना धन कहीं से आ जाए कि मैं वह सब कर सकूँ जो मैं चाहता हूँ। करोड़पति बनकर मैं अपने लिए नहीं अपने देश के गरीब, असहाय, बेघर लोगों की मदद करना चाहता हूँ। यदि मैं करोड़पति बन जाऊँ तो उन असहाय लड़कियों को मुफ़्त शिक्षा की व्यवस्था करूँ जो गरीबी के कारण या तो पढ़ ही नहीं पातीं या मजबूरी में अपनी पढ़ाई छोड़ देती हैं। मैं उन बीमार लोगों के इलाज की व्यवस्था करता जो धन के अभाव में अपना इलाज भी नहीं करा पाते। परंतु ये सब मेरे मधुर स्वप्न का हिस्सा है। मुझे तो एक ही कहावत याद आती है 'न होगा बाँस, न बजेगी बाँसुरी'। न में करोड़पति बन पाऊँगा और न मेरे सपने साकार हो पाएँगे।

नीचे आपको अभ्यास के लिए कुछ प्रश्न अनुच्छेद पर दिए जा रहे हैंI परीक्षा की दृष्टि से यह बहुत महत्वपूर्ण हैI आप हल करने का प्रयास करें, अभ्यास करेंI

अभ्यास कार्य
दिए गए संकेत बिंदुओं के आधार पर निम्नलिखित विषयों पर लगभग 80-100 शब्दों में अनुच्छेद लिखिए:

1. कमर तोड़ती महँगाई

संकेत-बिंदु:

2. प्रात: काल की सैर

संकेत-बिंदु:

3. समय ही जीवन है

संकेत-बिंदु:

4. अनुशासन ही जीवन है

संकेत-बिंदु:

5. एकता का महत्व

संकेत-बिंदु:

6. मेरा प्रिय कवि: कबीरदास

संकेत-बिंदु:

7. ऋतुओं का राजा वसंत

संकेत-बिंदु:

8. यदि मैं प्रधानमंत्री बन जाऊं

संकेत-बिंदु:

9. पुस्तक की आत्मकथा

संकेत-बिंदु:

10. मातृभूमि: माँ के समान

संकेत-बिंदु:

11. झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई

संकेत-बिंदु:

12. दीपावली: हिंदुओं का प्रमुख त्योहार

संकेत-बिंदु:

13. प्यारा भारत वर्ष

संकेत-बिंदु:

14. अनेकता में एकता: भारत देश

संकेत-बिंदु:

15. प्रकृति से खिलवाड़ न करें

संकेत-बिंदु:

16. बिना सोचे-समझे कार्य करने से बचें

संकेत-बिंदु:

17. सहशिक्षा

संकेत-बिंदु:

18. फ़ैशन और आज का युवा वर्ग

संकेत-बिंदु:
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