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कहानी लेखन

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कहानी साहित्य की रुचिकर विधाओं में से एक है I इसे सुनना और लिखना सबसे अधिक रुचिकर माना जाता है I हरियाणा बोर्ड की आठवीं कक्षा की वार्षिक परीक्षा में एवं केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की नौवीं और 12वीं कक्षा में कहानी लेखन पर प्रश्न पूछे जाते हैं I प्रश्न पूछने का ढंग शीर्षक के आधार पर, संकेतों के आधार पर, चित्रों के आधार पर किसी भी एक आधार पर हो सकता है I अब हम आपको इन तीनों कहानी लेखन के आधारों पर अध्ययन सामग्री दे रहे हैं I 24 कहानियां भी आपके आगे प्रस्तुत की जा रही हैं I अभ्यास करें और बेहतर कहानी लेखक बनिए I हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं I

कहानी क्या है?

कहानी लेखन पर विचार करने से पहले कहानी के स्वरूप और उसके इतिहास पर कुछ बातचीत करना ज़रूरी है। कहानी क्या है? अलग-अलग लेखकों और विद्वानों ने कहानी की विभिन्न परिभाषाएँ दी हैं और एक परिभाषा सबको मान्य नहीं है। लेकिन आगे बढ़ने के लिए हम कह सकते हैं कि किसी घटना, पात्र या समस्या का क्रमबद्ध ब्योरा जिसमें परिवेश हो, द्वंद्वात्मकता हो, कथा का क्रमिक विकास हो, चरम उत्कर्ष का बिंदु हो, उसे कहानी कहा जाता है।

कहानी लेखन पर शुरुआत करने से पहले विश्व के 2 महान कहानीकारों भीष्म साहनी और कृष्णा सोबती के कहानी के बारे में विचार जान लेते हैं


1. कृष्णा सोबती:

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वास्तव में कहानी हमारे जीवन से इतनी निकट या उसका इतना अविभाज्य हिस्सा है। कि हर आदमी किसी न किसी रूप में कहानी सुनता और सुनाता है। क्या आप जानते हैं कि यदि कोई आदमी किसी बात को बहुत घुमाफिरा कर कह रहा हो तो सुनने वाला कहता है-कहानी न सुनाओ! जल्दी से बताओ कि हुआ क्या? प्रत्येक मनुष्य में अपने अनुभव बाँटने और दूसरों के अनुभवों को जानने की प्राकृतिक इच्छा है अर्थात हम सब अपनी बातें किसी को सुनाना और दूसरों की सुनना चाहते हैं। इसलिए यह कहा जा सकता है भागी में कहानी लिखने का मूल भाव निहित है। यह बात दूसरी है कि कुछ लोगों में इस भाव का विकास हो जाता है और कुछ इसे विकसित नहीं करते।

कहानी का इतिहास:

जहाँ तक कहानी के इतिहास का सवाल है, वह उतना ही पुराना है जितना मानव इतिहास. क्योंकि कहानी, मानव स्वभाव और प्रकृति का हिस्सा है। धीरे-धीरे कहानी कहने की आदिम कला का विकास होने लगा। कथावाचक कहानियाँ सुनाते थे। किसी घटना-युद्ध, प्रेम, प्रतिशोध के किस्से सुनाए जाते थे। मानव स्वभाव का एक गुण कल्पना भी है। सच्ची घटनाओं पर आधारित कथा-कहानी सुनाते-सुनाते उसमें कल्पना का सम्मिश्रण भी होने लगा, क्योंकि प्रायः मनुष्य वह सुनना चाहता है जो उसे प्रिय है। मान लीजिए हमारा नायक कहीं युद्ध में हार ही क्यों न जाए लेकिन यदि वह नायक है तो हम यह सुनना चाहेंगे कि वह कितनी वीरता से लड़ा और कितनी बहादुरी से उसने एक अच्छे उद्देश्य के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए। नायक की वीरता का अच्छा बखान करने वाले कथावाचक की सब प्रशंसा करेंगे और उसे इनाम देंगे। कथावाचक सुनने वालों की आवश्यकतानुसार अपनी कल्पना के माध्यम से नायक के गुणों का बखान करेगा। मौखिक कहानी की परंपरा हमारे देश में बहुत पुरानी है और देश के कई भागों, विशेष रूप से राजस्थान में प्रचलित है।

कहानियों की लोकप्रियता:

प्राचीन काल में मौखिक कहानियों की लोकप्रियता इसलिए भी थी कि इससे बड़ा संचार का कोई और माध्यम नहीं था। इस कारण धर्म प्रचारकों ने भी अपने सिद्धांत और विचार लोगों तक पहुँचाने के लिए कहानी का सहारा लिया था। यही नहीं बल्कि

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शिक्षा देने के लिए भी कहानी की विधा का प्रयोग किया गया, जैसे पंचतंत्र की कहानियाँ लिखी गई जो बहुत शिक्षाप्रद हैं। इस तरह आदिकाल में ही कहानी के साथ 'उद्देश्य' का सम्मिश्रण हो गया था जो आगे चल कर और विकसित हुआ।

कहानी के तत्व

(i) कथानक

कहानी का केंद्रीय बिंदु कथानक होता है। कथानक है क्या? कहानी का वह संक्षिप्त रूप जिसमें प्रारंभ से अंत तक कहानी की सभी घटनाओं और पात्रों का उल्लेख किया गया हो। उदाहरण के लिए प्रेमचंद की कहानी कफ़न दस-बारह पृष्ठों की कहानी है लेकिन इसका कथानक दस-बारह पंक्तियों में भी लिखा जा सकता है। घीसू और माधव गाँव के दो गरीब और आलसी किसान हैं। बुधिया माधव की पत्नी है। वह प्रसव पीड़ा से कोठरी के अंदर तड़प रही है। कोठरी के बाहर घीसू और माधव अलाव में आलू भून कर खाने की तैयारी कर रहे हैं। बुधिया प्रसव पीड़ा से मर जाती है। दोनों के पास उसका कफन खरीदने के पैसे नहीं हैं। वे गाँव के जमींदार के पास पैसे माँगने जाते हैं। जमींदार पैसे दे देता है। गाँव के दूसरे संपन्न लोग भी पैसे देते हैं। घीसू और माधव कफ़न खरीदने बाजार जाते है पर, कफन खरीदने के बजाय उन पैसों की शराब पीते हैं और नशे में मदहोश होकर गाना गाते मंदिरालय में गिर पड़ते हैं।

यह कहा जा सकता है कि कथानक कहानी का एक प्रारंभिक नक्शा होता है। उसी तरह जैसे मकान बनाने से पहले एक बहुत प्रारंभिक नक्शा कागज पर बनाया जाता है।

आमतौर पर कहानीकार के मन में किसी घटना, जानकारी, अनुभव या कल्पना के कारण आता है। कभी कहानीकार की जानकारी में पूरा कथानक आता है और कभी कथानक का एक सूत्र आता है, केवल एक छोटा-सा प्रसंग या कोई एक पात्र कथाकार को आकर्षित करता है। इसके बाद कथाकार उसे विस्तार देने में जुट जाता है। विस्तार देने का काम कल्पना के आधार पर किया जाता है पर यह मझना जरूरी है कि कहानीकार की कल्पना 'कोरी कल्पना' नहीं होती। ऐसी कल्पना नहीं होती जो असंभव हो। बल्कि ऐसी कल्पना होती है जो संभव हो। कल्पना के विस्तार के लिए लेखक के पास जो सूत्र होता है उसी के माध्यम से कल्पना आगे बढ़ती है। यह सूत्र लेखक को एक परिवेश देता है, पात्र देता है, समस्या देता है। इनके आधार पर लेखक संभावनाओं पर विचार करता है और एक ऐसा काल्पनिक ढाँचा तैयार करता है जो संभावित हो और लेखक के उद्देश्यों से भी मेल खाता हो। उदाहरण के लिए लेखक ने अस्पताल के बाहर एक मरीज को देखा जानकारी मिली कि यह मरीज पिछले एक सप्ताह से लगातार आ रहा है पर अभी तक उसे यह मौका नहीं मिल सका है कि डॉक्टर को दिखा सके। इस जानकारी के बाद लेखक की कल्पना अस्पताल, वहाँ की व्यवस्था, पात्रों आदि की गतिविधियों पर केंद्रित हो जाएगी। इसके साथ ही वह अपना उद्देश्य भी तय करेगा। क्या वह अस्पताल केंद्रित कहानी लिखना चाहता है या वह केवल आप की पीड़ा तक अपने को सीमित रखेगा या क्या वह इस मानवीय त्रासदी को वर्तमान सामाजिक और राजनैतिक परिस्थितियों से जोड़कर कथानक तैयार करेगा।

कहानी को प्रामाणिक और रोचक बनाने के लिए देशकाल, वातावरण तथा स्थान का ध्यान रखना आवश्यक है।

(ii) द्वंद्व कथानक को आगे बढ़ाता है।

आमतौर पर कथानक में प्रारंभ, मध्य और अंत अर्थात कथानक का पूरा स्वरूप होता है। कथानक न केवल आगे बढ़ता है बल्कि उसमें द्वंद्व के तत्व भी होते हैं जो कहानी को रोचक बनाए रखते हैं। द्वंद के तत्वों से अभिप्राय यह है कि परिस्थितियों में इस काम के रास्ते में यह बाधा है। यह बाधा समाप्त हो गई तो आगे कौन-सी बाधा आ सकती है? या हो सकता है एक बाधा के समाप्त हो जाने या किसी निष्कर्ष पर पहुँच जाने के कारण कथानक पूरा हो जाए। कथानक को पूर्णता की शर्त यही होती है कि कहानी नाटकीय ढंग से अपने उद्देश्य को पूरा करने के बाद समाप्त हो। अंत तक कहानी में रोचकता बनी रहनी चाहिए। यह रोचकता द्वंद के कारण ही बनी रह पाएगी। जैसा कि पहले कहा जा चुका है हर घटना, पात्र समस्या का अपना देशकाल और स्थान होता है। कथानक का स्वरूप बन जाने के बाद कहानीकार कथानक के देशकाल तथा स्थान को पूरी तरह समझ लेता है, क्योंकि यह कहानी को प्रामाणिक और रोचक बनाने के लिए बहुत आवश्यक है। उदाहरण के लिए यदि अस्पताल का कथानक है तो अस्पताल का पूरा परिवेश, ध्वनियाँ लोग, कार्य-व्यापार और लोगों के पारस्परिक संबंध, नित्य घटने वाली घटनाएँ आदि का जानना आवश्यक है। लेखक जब अपने कथानक के आधार पर कहानी को विस्तार देता है तो उसमें इन सब जानकारियों को बहुत आवश्यकता होती है।

(iii) लेखक पात्रों के बारे में खुद न बोलकर उनके क्रियाकलापों और संवादों के माध्यम से चरित्र को सशक्त बनाता है।

देशकाल स्थान और परिवेश के बाद मानक के पात्रों पर विचार करना चाहिए। हर पात्र का अपना स्वरूप स्वभाव और उद्देश्य होता है। कहानी में यह विकसित भी होता है या अपना स्वरूप भी बदलता है। कहानीकार के सामने पात्रों का स्वरूप जितना स्पष्ट होगा उतनी ही उसे पात्रों का चरित्र चित्रण करने और उसके संवाद लिखने में होगी। इस कारण पात्रों का अध्ययन कहानी की एक बहुत महत्वपूर्ण और बुनियादी शर्त है। इसके अंतर्गत पात्रों के अवसंबंध पर भी विचार किया जाना चाहिए। कौन-से पात्र को किस-किस परिस्थिति में क्या प्रतिक्रिया होगी यह भी को पता होना चाहिए । दरअसल कहानीकार और उसके पात्रों के साथ निकटतम संबंध स्थापित होना चाहिए।

पात्रों का चरित्र चित्रण करने अर्थात उन्हें कहानी में कथानक की आवश्यकतानुसार अधिक से अधिक प्रभावशाली ढंग से लाने के कई तरीके हैं। चरित्र चित्रण का सबसे सरल तरीका पात्रों के गुणों का कहानीकार द्वारा बखान है। जैसे-मुरलीधर बड़ा दानी है, वह दूसरों का ध्यान रखता है, दूसरों के लिए उसकी जान रहती है आदि-आदि। पर यह तरीका प्रभावहीन और बहुत 'आउटडेटेड' है। पात्रों का चरित्र चित्रण उनके क्रिया-कलापों, संवादों तथा दूसरे लोगों द्वारा बोले गए संवादों के माध्यम से ही प्रभावशाली होता है। उदाहरण के लिए मुरलीधर ने एक गरीब आदमी को सरदी से ठिठुरते हुए देखा तो अपनी शाल उसे दे दी या मुरलीधर का दोस्त स्कूल में फ़ीस जमा कराने के लिए लाइन से बाहर निकल आया क्योंकि उसके पास पूरे पैसे नहीं थे। मुरलीधर ने दोस्त को बताए बिना फ़ीस जमा करा दी। मतलब यह कि पात्र जो काम करते हैं उनसे उनका सशक्त चित्रण होता है। दूसरे पात्र किसी का चरित्र चित्रण अपने संवादों के माध्यम से कर सकते हैं जैसे राजीव अपने और मुरलीधर के मित्र प्रयोग से कह रहा है यार इतनी बड़ी प्रॉब्लम तो मुरलीधर ही 'सॉल्व' कर सकता है। चलो उसी के पास चलें।

पात्रों का चरित्र चित्रण पात्रों की अभिरुचियों के माध्यम से भी होता है। समाज में अलग-अलग प्रकार के लोगों की अपने स्वभाव के अनुसार अलग-अलग अभिरचियाँ होती है। मान लीजिए एक आदमी जंगल में जाकर खतरनाक जानवरों की तसवीरें खींचता है। निश्चित रूप से यह साहसी आदमी होगा। एक आदमी वेश्यावृति कराता है. झूठ बोलता है, दलाली करता है, कर्ज वापस नहीं करता। ऐसे आदमी का अपना अलग स्वरूप बनेगा।

(iv) पात्रों के संवाद:

कहानी में पात्रों के संवाद बहुत महत्त्वपूर्ण होते हैं। संवाद के बिना पात्र की कल्पना मुश्किल है। संवाद ही कहानी को, पात्र को स्थापित, विकसित करते हैं और कहानी को गति देते है, आगे बढ़ाते हैं। जो घटना या प्रतिक्रिया कहानीकार होती हुई नहीं दिखा सकता उसे संवादों के माध्यम से सामने लाता है। इसलिए संवादों का महत्व बराबर बना रहता है। पात्रो के संवाद लिखते समय यह अवश्य ध्यान में रहना चाहिए कि संवाद पात्रों के स्वभाव और पूरी पृष्ठभूमि के अनुकूल हों। वह उसके विश्वासों, आदशों तथा स्थितियों के भी अनुकूल होने चाहिए। संवाद लिखते समय लेखक गायब हो जाता है और पात्र स्वयं संवाद बोलने लगते हैं। उदाहरण के लिए किसी मज़दूर के संवाद ऐसे होने चाहिए कि केवल संवाद सुनकर ही श्रोता को पता चल जाए कि कौन बोल रहा है, यह आदमी क्या करता है. इसकी पृष्ठभूमि क्या है आदि-आदि। संवाद छोटे, स्वाभाविक और उद्देश्य के प्रति सीधे लक्षित होने चाहिए। संवादों का अनावश्यक विस्तार बहुत सी जटिलताएँ पैदा कर देता है और कहानी में झोल आ जाता है।

(v) क्लाइमेक्स:

कथानक के अनुसार कहानी चरम उत्कर्ष अर्थात क्लाइमेक्स की ओर बढ़ती है। चरम उत्कर्ष का चित्रण बहुत ध्यानपूर्वक करना चाहिए क्योंकि भावों या पात्रों के अतिरिक्त अभिव्यक्ति चरम उत्कर्ष के प्रभाव को कम कर सकती है। कहानीकार की प्रतिबद्धता या उद्देश्य की पूर्ति के प्रति अतिरिक्त आग्रह कहानी को भाषण में बदल सकते हैं। सर्वोत्तम यह होता है कि चरम उत्कर्ष पाठक को स्वयं सोचने और लेखकीय पक्षधर की ओर आने के लिए प्रेरित करें लेकिन पाठक को यह भी लगे कि उसे स्वतंत्रता दी गई है और उसने जो निर्णय निकाले हैं, वे उसके अपने हैं। पहले भी संकेत दिया गया है कि कथानक के बुनियादी तत्त्वों में द्वंद्व का महत्त्व बहुत अधिक है। द्वंद्व ही कथानक को आगे बढ़ाता है। उदाहरण के लिए अगर दो आदमी किसी बात पर सहमत हैं तो उनके बीच कोई द्वंद नहीं है और बातचीत आमतौर से आगे नहीं बढ़ सकती है। लेकिन असहमति है तो बातचीत सरलता से आगे बढ़ेगी। कहानी में द्वंद्व दो विरोधी तत्वों का टकराव या किसी की खोज में आने वाली बाधाओं अंतद्वंद्र आदि के कारण पैदा होता है। कहानीकार अपने कथानक में इंद्र के बिंदुओं को जितना स्पष्ट रखेगा कहानी भी उतनी ही सफलता से आगे बढ़ेगी। कहानी लिखने की कला सीखने का सबसे अच्छा और सीधा रास्ता यह है कि अच्छी कहानियाँ पढ़ी जाएँ और उनका विश्लेषण किया जाए। कहानी लेखन सिखाने की प्रक्रिया में यही सबसे अधिक कारगर माध्यम होगा।

कहानी लेखन सीखने का सबसे कारगर तरीका होगा कि अच्छी कहानियाँ पढ़ी जाएँ।

2. भीष्म साहनी: “जब मैंने पहली कहानी लिखी”

चाहिए तो यह था कि मेरी पहली कहानी प्रेम-कहानी होती। उम्र के एतबार से भी यही मुनासिब था और अदब के एतबार से भी। पर प्रेम के लिए (और प्रेम कहानी के लिए भी) अनुकूल परिस्थियाँ हों तब काम बने।


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मैंने वही लिखा जो मेरे जैसे माहौल में पलने वाले सभी भारतीय युवक लिखते हैं-अबला नारी की कहानी हिंदी के अधिकांश लेखकों का तो साहित्य में पदार्पण अबला नारी की कहानी से ही होता है और यह दुखांत होनी चाहिए। मैंने भी वैसा ही किया। बड़ी बेमतलब, बेतुकी कहानी थी, न सिर, न पैर और शुरू से आखिर तक मनगढ़ंत, पर चूँकि अबला नारी के बारे में थी और दुखांत थी, इसलिए वानप्रस्थी जी को भी कोई एतराज नहीं हो सकता था, और पिताजी को भी नहीं, इसलिए कहानी, कालिज पत्रिका में स्थान पा गई।

पर इसके कुछ ही देर बाद एक प्रेमकहानी सचमुच कलम पर आ ही गई। नख-शिख से प्रेम कहानी ही थी, पर किसी दूसरी दुनिया की कहानी, जिससे मैं परिचित नहीं था। तब मैं कालिज छोड़ चुका था, और पिताजी के व्यापार में हाथ बँटाने लगा था। कालिज के दिन पीछे छूटते जा रहे थे, और आगे की दुनिया बड़ी ऊटपटाँग और बेतुकी-सी नजर आ रही थी।
हर दूसरे दिन कोई-न-कोई अनूठा अनुभव होता। कभी अपने घुटने छिल जाते, कभी किसी दूसरे को तिरस्कृत होते देखता। मन उचट उचट जाता। तभी एक दिन बाजार में...मुझे दो प्रेमी नजर आए।

शाम के वक्त, नमूनों का पुलिंदा बगल में दबाए मैं सदर बाज़ार से शहर की ओर लौट रहा था, जब सरकारी अस्पताल के सामने, बड़े-से नीम के पेड़ के पास मुझे भीड़ खड़ी नजर आई। भीड़ देखकर मैं यों भी उतावला हो जाया करता था, कदम बढ़ाता पास जा पहुँचा। अंदर झाँककर देखा तो वहाँ दो प्रेमियों का तमाशा चल रहा था। टिप्पणियाँ और ठिठोली भी चल रही थी। घेरे के अंदर एक युवती खड़ी रो रही थी और कुछ दूरी पर एक युवक जमीन पर बैठा, दोनों हाथों में अपना सिर थामे, बार-बार लड़की से कह रहा था, “राजो, दो दिन और माँग खा। मैं दो दिन में तंदुरुस्त हो जाऊँगा। फिर मैं मजूरी करने लायक हो जाऊंगा।"

और लड़की बराबर रोए जा रही थी। उसकी नीली-नीली आँखें रो-रोकर सूज रही थीं। "मैं कहाँ से माँगूँ? मुझे अकेले में डर लगता है। " दोनों प्रेमी, आस-पास खड़ी भीड़ को अपना साक्षी बना रहे थे।

“देखो बाबूजी, मैं बीमार हूँ। इधर अस्पताल में पड़ा हूँ। मैं कहता हूँ दो दिन और माँग खा, फिर मैं चंगा हो जाऊँगा। " I लड़की लोगों को अपना साक्षी बनाकर कहती, "यहाँ आकर बीमार पड़ गया, बाबूजी मैं क्या करूँ? इधर पुल पर मजूरी करती रही हूँ, पर यहाँ मुझे डर लगता है। " इस पर लड़का तड़पकर कहता, "देख राजो, मुझे छोड़कर नहीं जा। इसे समझाओ बाबूजी, यह मुझे छोड़कर चली जाएगी तो इसे मैं कहाँ ढूँढूँगा।"

“यहाँ मुझे डर लगता है। मैं रात को अकेली सड़क पर कैसे रहूँ?" पता चला कि दोनों प्रेमी गाँव से भागकर शहर में आए हैं, किसी फकीर ने उनका निकाह भी करा दिया है, फटेहाल गरीबी के स्तर पर घिसटने वाले प्रेमी! शहर पहुँचकर कुछ दिन तक तो लड़के को मज़दूरी मिलती रही। पास ही में एक पुल था। वह पुल के एक छोर से सामान उठाता और दूसरे छोर तक ले जाता, जिस काम के लिए उसे इकन्नी मिलती। कभी किसी की साइकल तो कभी किसी का गट्ठर। हनीमून पूरे पाँच दिन तक चला। दोनों ने न केवल खाया-पिया, बल्कि लड़के ने अपनी कमाई में से जापानी छींट का एक जोड़ा भी लड़की को बनवा कर दिया, जो उन दिनों अढ़ाई आने गज़ में बिका करती थी।

दोनों रो रहे थे और तमाशबीन खड़े हँस रहे थे। कोई लड़की की नीली आँखों पर टिप्पणी करता, कोई उनके 'ऐसे-वैसे' प्रेम पर, और सड़क की भीड़ में खड़े लोग केवल आवाजें ही नहीं कसते, वे इरादे भी रखते हैं। और एक मौलवीजी लड़की की पीठ सहलाने लगे थे और उसे आश्रय देने का आश्वासन देने लगे थे। और प्रेमी बिलख-बिलख कर प्रेमिका से अपने प्रेम के वास्ते डाल रहा था।

तभी, पटाक्षेप की भाँति अँधेरा उतरने लगा था और पीछे अस्पताल की घंटी बज उठी थी जिसमें प्रेमी युवक भरती हुआ था, और वह गिड़गिड़ाता, चिल्लाता, हाथ बाँधता, लड़की से दो दिन और माँग खाने का प्रेमालाप करता अस्पताल की ओर सरकने लगा और मौलवीजी सरकते हुए लड़की के पास आने लगे, और घबराई, किंकर्त्तव्यविमूढ़ लड़की, मृग-शावक की भाँति सिर से पैर तक काँप रही थी...

नायक भी था, नायिका भी थी, खलनायक भी था, भाव भी था, विरह भी और कहानी का अंत अनिश्चय के धुँधलके में खोया हुआ भी था। मैं यह प्रेम-कहानी लिखने का लोभ संवरण नहीं कर सका। लुक-छिपकर लिख ही डाली, जो कुछ मुद्दत बाद 'नीली आँखें' शीर्षक से, अमृतरायजी के संपादकत्व में 'हंस' में छपी, इसका मैंने आठ रुपये मुआवजा भी वसूल किया जो आज के आठ सौ रुपये से भी अधिक था।

कहानी-लेखन

कहानी लेखन: पहले हम सिर्फ ढाँचे के आधार पर कहानी लिखते थे, आजकल शीर्षक देकर कहानी लिखने के लिये पूछ सकते है या कहानी की शुरुआत दी हुई हो उसका अंत हमें पूर्ण करना हो / या कहानी का अंत दिया होगा, हमें शुरुवात करनी होगी / या ढाँचे के आधार पर कहानी लिखने के लिये कह सकते है। आज हम ढाँचे के आधार पर कहानी किस तरह लिखनी है, इस पर चर्चा करेंगे।

बच्चो ! जब से मानव सभ्यता का विकास हुआ है तब से कहानी कहने सुनने की प्रथा चली आ रही है है। कहानी साहित्य की रुचिकर विधाओं में एक है। साहित्य की सभी विधाओं में से कहानी कहने-सुनने या लिखने की विधा सबसे रुचिकर है। बचपन से ही आप नानी-दादी से रोचक एवं शिक्षाप्रद कहानियाँ सुनते आए हैं।

कहानी सुनना-सुनाना तो एक कला है ही, लिखना भी एक प्रकार की कला है। इस कला को अभ्यास द्वारा कोई भी सीख सकता है। आप अपने मित्रों, सहपाठियों को अपनी लिखी कहानियाँ सुना कर उन्हें भी कहानी लेखन के लिए प्रेरित कर सकते हैं तथा अपने स्कूल की पत्रिका या अन्य पत्रिकाओं में भी अपनी कहानियाँ छपवा सकते हैं।

अच्छी कहानी लिखते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना आवश्यक है:

  1. कहानी रोचक हो तथा समझ में आ सके।
  2. कहानी का आरंभ ऐसा होना चाहिए जिसे पढ़कर पूरी कहानी पढ़ने का मन करे।
  3. कहानी की रूपरेखा पहले से तैयार कर लें।
  4. कहानी अधिक बड़ी नहीं होनी चाहिए।
  5. कहानी लिखते समय भूतकाल की क्रियाओं का प्रयोग होना चाहिए। कहानी जातक कथाओं, पंचतंत्र,
    हितोपदेश, देश-विदेश की लोककथाओं को पढ़कर भी लिखी जा सकती हैं।
    और अन्य ग्रंथों से पढ़कर लिखने का अभ्यास करना चाहिए।
  6. कहानी-लेखन के लिए नैतिक चारित्रिक घटनाओं का चयन करना चाहिए।
  7. कहानी के सभी पात्र स्वाभाविक एवं सजीव लगने चाहिए।
  8. कहानी के अंत में उससे मिलने वाली शिक्षा जरूर लिखनी चाहिए।

परीक्षा में यह निम्न तीन प्रकार से पूछी जा सकती है:

  1. शीर्षक के आधार पर कहानी-लेखन।
  2. संकेतों के आधार पर कहानी-लेखन ।
  3. चित्रों के आधार पर कहानी-लेखन।

इन तीनों आधारों पर कहानी लिखने के लिए निम्नलिखित बातों पर ध्यान रखना चाहिए:

  1. शब्द सीमा 100 से 150 के बीच में हो।
  2. एक उपर्युक्त शीर्षक हो ।
  3. कहानी की भाषा सरल, सरस एवं सुगम हो ।
  4. कहानी का क्रम सदैव बना रहे।
  5. उससे मिलने वाली शिक्षा/सीख जरूर लिखनी चाहिए।
यहाँ पर हम शीर्षकों अथवा मुख्य भावों और रूपरेखा, चित्र के आधार पर कहानी-लेखन का अभ्यास करेंगे।

A. शीर्षक के आधार पर कहानी लेखन

कहानी 1:

शीर्षक: एकता में बल है

एक राम  सिंह नाम का किसान था। उसके चार बेटे थे। वे बहुत मेहनती और ईमानदार थे। बस अगर कोई बुरी बात थी तो यह कि उनका आपस में झगड़ा ही होता रहता था। वे किसी बात पर आपस में सहमत नहीं होते थे। यह सब देख उनका पिता राम  सिंह बहुत दुखी होता था। 

  एक बार किसान राम  सिंह बहुत बीमार पड़ गया। अब उसे यह चिन्ता सताने लगी कि अगर उसे कुछ हो गया तो उसके बेटों का क्या होगा। तभी उसे एक तरकीब सूझी। उसने बहुत सी लकड़ियां इकट्ठी की और उनका एक गट्ठर  बनाया। किसान ने अपने बेटों को बुलाया और उन्हें बारी-बारी से वो गट्ठर तोड़ने को दिया। कोई भी उसे नहीं तोड़ सका। उसके बाद किसान ने उस गट्ठर को खोल कर सबको एक एक लकड़ी दी और तोड़ने को कहा। इस बार सबने झट से अपनी-अपनी लकड़ी तोड़ दी। 

  तब किसान ने सब को समझाया – “देखो ! जब मैने तुम सब को यह गट्ठर तोड़ने को दिया तो कोई भी इसे तोड़ नहीं पाया। लेकिन जैसे ही उसे अलग करके एक-एक लकड़ी दी तो उसे सब ने आसानी से तोड़ दिया। ऐसे ही अगर तुम सब मिल कर रहोगे तो हर मुसीबत का मुकाबला कर सकते हो, जो अलग-अलग रह कर नहीं कर सकते।“ यह बात किसान के चारों बेटों की समझ में आ गई और फिर सब मिल जुल कर रहने लगे। किसान भी बहुत खुश हुआ। 

सीख: एकता में बहुत बल होता है। 

कहानी 2:

शीर्षक: मेहनत का फल

एक गांव में दो मित्र अनिल और सोहन रहते थे। अनिल बहुत धार्मिक था और भगवान को बहुत मानता था। जबकि सोहन बहुत मेहनती थी। एक बार दोनों ने मिलकर एक बीघा जमीन खरीदी। जिससे वह बहुत फ़सल ऊगा कर अपना घर बनाना चाहते थे। सोहन तो खेत में बहुत मेहनत करता लेकिन अनिल कुछ काम नहीं करता बल्कि मंदिर में जाकर भगवान से अच्छी फसल के लिए प्रार्थना करता था। इसी तरह समय बीतता गया। कुछ समय बाद खेत की फसल पक कर तैयार हो गयी। जिसको दोनों ने बाजार ले जाकर बेच दिया और उनको अच्छा पैसा मिला। घर आकर सोहन ने अनिल को कहा की इस धन का ज्यादा हिस्सा मुझे मिलेगा क्योंकि मैंने खेत में ज्यादा मेहनत की है। यह बात सुनकर अनिल बोला नहीं धन का तुमसे ज्यादा हिस्सा मुझे मिलना चाहिए क्योकि मैंने भगवान से इसकी प्रार्थना की तभी हमको अच्छी फ़सल हुई। भगवान के बिना कुछ संभव नहीं है। जब वह दोनों इस बात को आपस में नहीं सुलझा सके तो धन के बॅटवारे के लिए दोनों गांव के मुखिया के पास पहुंचे।

  मुखिया ने दोनों की सारी बात सुनकर उन दोनों को एक – एक बोरा चावल का दिया जिसमें कंकड़ मिले हुए थे। मुखिया ने कहा की कल सुबह तक तुम दोनों को इसमें से चावल और कंकड़ अलग करके लाने है तब में निर्णय करूँगा की इस धन का ज्यादा हिस्सा किसको मिलना चाहिए। दोनों चावल की बोरी लेकर अपने घर चले गए। सोहन ने रात भर  जागकर चावल और कंकड़ को अलग किया। लेकिन अनिल चावल की बोरी को लेकर मंदिर में गया और भगवान से चावल में से कंकड़ अलग करने की प्रार्थना की।

  अगले दिन सुबह सोहन जितने चावल और कंकड़ अलग कर सका उसको ले जाकर मुखिया के पास गया। जिसे देखकर मुखिया खुश हुआ। अनिल वैसी की वैसी बोरी को ले जाकर मुखिया के पास गया। मुखिया ने अनिल को कहा की दिखाओ तुमने कितने चावल साफ़ किये है। अनिल ने कहा की मुझे भगवान पर पूरा भरोसा है की सारे चावल साफ़ हो गए होंगे। जब बोरी को खोला गया तो चावल और कंकड़ वैसे के वैसे ही थे।

  जमींदार ने अनिल को कहा की भगवान भी तभी सहायता करते है जब तुम मेहनत करते हो। जमींदार ने धन का ज्यादा हिस्सा सोहन को दिया। इसके बाद अनिल भी सोहन की तरह खेत में मेहनत करने लगा और अबकी बार उनकी फ़सल पहले से भी अच्छी हुई।

सीख: इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है की हमें कभी भी भगवान के भरोसे नहीं बैठना चाहिए। हमें सफलता प्राप्त करने के लिए मेहनत करनी चाहिए।

कहानी 3:

शीर्षक: चींटी और पक्षी

एक दिन एक पक्षी नदी के तट पर बैठा पानी पी रहा था। उसने देखा कि एक पत्ता पानी में बहता जा रहा है। उस पत्ते पर एक चींटी बैठी हुई है। उस पक्षी ने सोचा कि चींटी पानी की लहरों से इस पत्ते से गिरकर डूब जाएगी और मर जाएगी। उसके मन में चींटी के प्रति दया उमड़ आई और उसने उड़कर पत्ते को चोंच से उठा लिया तथा धरती पर लाकर रख दिया। चींटी भी अपने रक्षक पक्षी पर बहुत खुश हुई और उसका धन्यवाद किया।

कुछ दिन बाद वही पक्षी एक वृक्ष की शाखा पर बैठा हुआ था और चींटी उससे कुछ दूरी पर चली जा रही थी कि सहसा उसकी दृष्टि एक बहेलिए पर पड़ी। वह उस पक्षी को पकड़ने का प्रयास कर रहा था। चींटी उस पक्षी के उपकार को भूली नहीं थी। आज उस पक्षी के प्राणों को संकट में देखकर उससे रहा न गया। उसने उस पक्षी के प्राण बचाने का उपाय सोच लिया। वह तेज़ी से उस बहेलिए के पैर पर चढ़ गई और ज़ोर से काटा। चींटी के काटने से बहेलिए की चीख निकल गई। पक्षी उसकी चीख से उड़ गया। इस प्रकार चींटी ने उपकार का ऋण चुकाया।

शिक्षा: कर भला हो भला, अंत भले का भला ।

कहानी 4:

शीर्षक: संगति का फल

किसी नगर में एक बहेलिया दो पिंजड़े लेकर आया। उन पिंजड़ों में दो तोते थे। उसने एक तोते का मूल्य स्वर्ण मुद्रा और दूसरे का चाँदी का एक रुपया रखा हुआ था। उस नगर के लोग दोनों तोतों को देखते, पर उनके अंतर को नहीं समझ पा रहे थे। तभी राजा की सवारी उधर से निकली। उस बहेलिए की आवाज़ राजा के कानों में पड़ी। राजा ने उसे बुलाकर पूछा, “तुम्हारे इन दोनों तोतों के मूल्यों में इतना अंतर क्यों है?" बहेलिए ने कहा, “महाराज! आप इन दोनों तोतों को ले जाएँ, तो आपको स्वयं ही पता चल जाएगा।"

बहेलिए के कहने पर राजा ने दोनों तोते ले लिए। जब रात्रि में वे विश्राम करने लगे, तो उन्होंने सेवक को आदेश दिया कि स्वर्ण मुद्रा वाले तोते का पिंजड़ा मेरी शैया के पास टाँग दिया जाए। सेवक ने राजा की आज्ञा का पालन किया। सवेरे विहान बेला में तोते ने कहना आरंभ किया, “राम, राम, सीता राम ।" फिर उस तोते ने खूब सुंदर भजन सुनाए। सुंदर श्लोक पढ़े । सुनकर राजा बहुत प्रसन्न हुआ। अगले दिन राजा ने दूसरे तोते का पिंजड़ा शैया के पास रखवाया। जैसे ही सवेरा हुआ, वैसे ही उस तोते ने अपशब्द बकने आरंभ कर दिए। सुनकर राजा को क्रोध चढ़ आया। उन्होंने सेवक को आदेश दिया, “इस दुष्ट तोते का अंत कर डालो।"

पहला तोता भी पास में ही था। उसने राजा से प्रार्थना की, “महाराज! इसे मारिए मत। यह मेरा सहोदर है। हम दोनों एक साथ जाल में फँसे थे। मुझे एक संत ने ले लिया। उनके यहाँ मैं भजन और श्लोक सीख गया। इसे एक मलेच्छ ने ले लिया! वहाँ इसने ये अपशब्द सीख लिए। इसका कोई दोष नहीं है, यह तो संगति का फल है। " राजा ने उस तोते की बात मानकर दूसरे तोते को मारा नहीं, उसे उड़ा दिया।

शिक्षा: अच्छी संगति का फल अच्छा होता है ।

कहानी 5:

शीर्षक: सत्य की सदा जीत होती है

किसी राजा के दरबार में दो महिलाएँ एक शिशु को लेकर पहुँचीं। दोनों ने ही उस शिशु को अपना बताया। उनकी बातें सुनकर राजा चिंतित हो उठे। उनकी समझ में नहीं आ रहा था कि असली माता की पहचान कैसे की जाए ? उसे शिशु कैसे दिलाया जाए। कुछ क्षण बाद उन्होंने मंत्री से जल्लाद को बुलवाने के लिए कहा। आदेश का पालन हुआ । भयंकर आकृतिवाला व्यक्ति तलवार लिए दरबार में उपस्थित हो गया। राजा ने उन महिलाओं से शिशु को लेकर सामने चौकी पर लिटाने का आदेश दिया। शिशु के लेटते ही उन्होंने जल्लाद से कहा कि शिशु के दो बराबर हिस्से करके दोनों को एक-एक दे दो। राजा की आज्ञा सुनकर दोनों महिलाओं में से एक महिला चीखकर बोली, "महाराज ! शिशु को मत मारिए, उसे ही दे दीजिए।" राजा समझ गए कि शिशु की असली माँ यही महिला है। उन्होंने शिशु को उठाकर उस महिला की गोद में दे दिया। दूसरी महिला को झूठ बोलने का दंड भुगतना पड़ा।

शिक्षा: सत्य की सदा जीत होती है

कहानी 6:

शीर्षक: दृढ़ निश्चय

सोहन की इच्छा थी कि वह पढ़-लिखकर बड़ा आदमी बने। इस बार छठी कक्षा उसने अच्छे अंकों से पास की थी। लेकिन उसके पिता जी एक मज़दूर थे। निर्धनता के कारण आगे की पढ़ाई उसके लिए मुश्किल थी। अतः उसने सोचा, "क्यों न मैं छुट्टियों का उपयोग कुछ धन अर्जन करने के लिए कर लूँ?" उसके पड़ोसी रहीम चाचा को पैसों की जरूरत थी। अतः वे अपनी बकरी बेचना चाहते थे। सोहन ने उनसे वह बकरी तीन सौ रुपए में यह कहकर ले ली कि शाम को बकरी बेचकर जब वह घर लौटेगा, तो उनके पैसे चुका देगा। बहुत मोल-भाव के बाद उसने पशु-हाट में वह बकरी चार सौ रुपये में बेची। जब वह वापस घर आ रहा था तो कालू गुंडे ने चाकू का भय दिखाकर उससे सारे रुपये छीन लिए । सोहन रोने लगा, लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी। वह सीधा थाने गया और इंस्पेक्टर से अपनी व्यथा कही। इंस्पेक्टर उसे साथ लेकर पशु-हाट की तरफ आया। एक पान की दुकान पर कालू खड़ा था। सोहन ने उसे दूर से ही पहचान लिया और इंस्पेक्टर को बता दिया। दो-तीन बेंत खाने के बाद ही कालू ने सच बता दिया और सौ के चार नोट वापस कर दिए । इंस्पेक्टर ने सोहन को सारे पैसे देकर घर जाने को कहा और कालू को जेल ले गए। घर पहुँचकर उसने रहीम चाचा को तीन मौ रुपए दे दिए और शेष एक सौ रुपए अपनी फीस एवं पढ़ाई के खर्च के लिए रख लिए। इस तरह व्यक्ति यदि दृढ़ निश्चयी हो, तो वह हरेक परेशानी का सामना कर अपना लक्ष्य पा ही लेता है।

शिक्षा: यदि दृढ़ निश्चयी हो, तो हरेक परेशानी का सामना कर अपना लक्ष्य पा सकते है।

कहानी 7:

शीर्षक: जैसे को तैसा

किसी जंगल में एक लोमड़ी रहती थी। वह बड़ी चालाक थी। उसका एक मित्र सारस था जो पास हो एक तालाब में रहता था।
एक दिन लोमड़ी ने सारस को दावत दी। जब सारस दावत खाने आया तो लोमड़ी ने एक थाल में उसके लिए खिचड़ी परोस दी। लंबी चोंच के कारण सारस थोड़ी खिचड़ी ही खा सका। पर लोमड़ी झट से सारी खिचड़ी चट कर गई। सारस भूखा ही अपने घर लौट गया। अगले दिन सारस ने लोमड़ी को खीर खारे के लिए अपने घर बुलाया। खीर का नाम सुनते ही लोमड़ी के मुँह में पानी भर आया। लोमड़ी खीर खाने के लिए सारस के घर गई। सारस ने एक पतली गर्दन वाली सुराही में खीर भरकर लोमड़ी के सामने रख दी सारस अपनी लंबी चोंच से मजे से खीर खाता रहा। पर लोमड़ी जरा-सी भी खीर नहीं खा पाई। वह जीभ निकालकर सारस का मुँह देखती रही। कुछ देर बाद लोमड़ी भूखी ही अपने घर भाग गई।

शिक्षा: जो बुरा करता है उसे बुराई मिलती है।

कहानी 8:

शीर्षक: प्यासा कौवा

एक कौआ था। उसे बहुत प्यास लग रही थी। उसने दूर-दूर तक देखा। उसे कहीं भी पानी दिखाई नहीं दिया। उसका गला सूखने लगा। तभी उसे एक पेड़ के नीचे घड़ा दिखाई दिया। कौआ घड़े के ऊपर बैठ गया। उसने घड़े में झाँककर देखा। घड़े में थोड़ा सा ही पानी था। कौए ने अपनी चोंच घड़े में डाली, पर चोंच पानी तक नहीं पहुंच पाई। घड़े के चारों तरफ कंकड़ पड़े हुए थे, तभी कौए ने एक उपाय सोचा। उसने चोंच से कंकड़ उठा-उठाकर पानी में डालने शुरू कर दिए। थोड़ी देर में पानी ऊपर आ गया और कौए ने जी भरकर पानी पिया। उसकी प्यास बुझ गई। वह खुशी खुशी उड़ गया। सोचने-विचारने से हर समस्या का हल निकल आता है।

शिक्षा: जहाँ चाह वहाँ राह |

कहानी 9:

शीर्षक: लोभी किसान

किसी गाँव में एक लोभी किसान रहता था। खेत, मकान, घोड़ा, गाय आदि होने पर भी वह बेचैन रहता था। वह अधिक धनवान बनना चाहता था। एक दिन एक साधु बाबा उसके गाँव में आए। किसान ने बाबा की सेवा की और उन्हें अपना दुख बताया। साधु बाबा ने उसे एक मुरगी दी। वह मुरगी रोज़ाना सोने का एक अंडा देती थी। किसान खुश हो गया। उसने बाबा को धन्यवाद दिया। वह मन ही मन सोच रहा था अब उसका धनवान बनने का सपना पूरा हो जाएगा।

साधु बाबा चले गए। किसान को रोज़ाना सोने का अंडा मिलने लगा। पर लोभी किसान की बेचैनी बढ़ गई। वह जल्दी धनवान बनना चाहता था। उसने सोचा मुरगी के पेट को काटकर सभी अंडे एक साथ निकाल लिए जाएँ। लोभी किसान ने एक चाकू लिया और मुरगी का पेट काट दिया। मुरगी के पेट से एक भी अंडा नहीं निकला। मुरगी भी मर गई। किसान बहुत पछताया। इसलिए लोभ या लालच करना बुरी बात है। लोभी आदमी को पछताना पड़ता है।

शिक्षा: लालच बुरी बात है।

कहानी 10:

शीर्षक: सूझ

किशन अपनी गायों को चराकर जब गाँव वापस लौट रहा था, तो उसने मुखिया जी के घर के सामने चहल-पहल देखी। उसे बहुत अच्छा लगा। वह भी गायों को बाँधकर उसी स्थान पर पहुँच गया। खूँटों के सहारे लगे छोटे-छोटे बिजली के बल्ब झिलमिल कर रहे थे। वहीं छोटे-छोटे बच्चे खेलने में व्यस्त थे और वे बार-बार लटक रही एक नंगी तार को छूने की कोशिश कर रहे थे। सूरज यह देखकर चौंक गया। उसने सोचा कि ये बच्चे तो इसे नहीं छू सकेंगे, लेकिन किसी बड़े आदमी से अनजाने में यह तार छू सकती है। यह सोचकर वह मुखिया जी के घर की तरफ दौड़ा और जोर-ज़ोर से चिल्लाने लगा। काम में व्यस्त लोगों ने जब उसका शोर सुना तो ये किशन के पास आए और पूछने लगे, " क्या बात है?" किशन ने उन लोगों को लटकते तार के विषय में बताया। मुखिया जी तुरंत वहाँ पहुँचे और उसे ठीक करवाया। सभी लोग किशन को सूझ की प्रशंसा करने लगे। आज उसके सूझ के कारण ही एक अनहोनी घटना होने से बच गई। अन्यथा खुशी का यह क्षण कभी भी शोक में बदल सकता था।

शिक्षा: समझदारी किसी भी मुसीबत को टाल सकती है।

कहानी 11:

शीर्षक: परोपकार

अभी सूर्य उगने ही जा रहा था। एक साधू नदी के किनारे कपड़े उतारकर नदी में स्नान करने उतरा ही था कि उसे एक विच्छ पानी के तेज बहाव के साथ बहता नजर आया। साधू को इस छोटे से जीव पर दया आ गई और सोचने लगे कि इसकी प्राणरक्षा कैसे की जाए? उन्होंने पानी के साथ बहते विष्णु को हाथ में उठा लिया। हथेली पर आते ही बिच्छू ने अपनी प्रवृत्ति के अनुसार डंक मार दी। भवराकर साधू ने अपना हाथ झटके से खींच लिया। बिच्छू फिर नदी में गिर गया और पानी के साथ बहने लगा। साधू ने सोचा कि डंक मारना तो बिच्छू की प्रवृत्ति है और जीवन रक्षा करना मेरी यह सोचकर उसने पुनः कोशिश कर बिच्छू को उठाया और फिर वही हुआ। अंत में उसने फिर कोशिश की, डंक का कष्ट झेला, दाँत भाँचकर उसे किनारे पर ले गया और धरती पर रख दिया। परोपकार का कोई मूल्य नहीं होता- मनुष्य की प्रवृत्ति हो ऐसी होनी चाहिए।

शिक्षा: परोपकार का कोई मूल्य नहीं होता I

कहानी 12:

शीर्षक: एकता में बल

एक गाँव में एक वृदा, अपनी पत्नी और तीन जवान बेटों के साथ रहता था। उसकी पत्नी बहुत सुशील थी लेकिन यह अपने तीनों बेटों से असंतुष्ट था। आए दिन बात बात पर तीनों एक-दूसरे से झगड़ पड़ते बूदा मेहनत-मजदूरी कर अपना व अपने परिवार के सभी सदस्यों का पालन-पोषण करता था। उसे अपने बेटों की चिंता सताये जा रही थी। प्रत्येक रात सोने से पहले वह यही चिंता करता रहता कि कैसे तीनों पुत्रों को एकसूत्र में बाँधे। एक रात उसके मन में कुछ विचार आया। सुबह तड़के ही वह अपनी कुल्हाड़ी लेकर जंगल की ओर चल पड़ा। शाम को वह ढेर सारी पतली सूखी लकड़ियों की गठरी लेकर घर पहुंचा। उसने तीनों बेटों को एक-एक कर बुलाया और प्रत्येक के हाथों में एक-एक लकड़ी देकर तोड़ने का आदेश दिया। सबने एक झटके में ही अपनी-अपनी लकड़ी तोड़ दी। तब बूढ़े ने सात-आठ लकड़ियों को एक साथ रस्सी से बाँध दिया और तीनों को एक-एक कर इस गट्ठर को तोड़ने के लिए कहा। इस गट्ठर में बँधी लकड़ी को अकेले तो कोई तोड़ ही नहीं सका तीनों मिलकर भी नहीं तोड़ सके। तब बूढ़े ने समझाया, "देखा बेटा एकता में कितना बल है ? तुम तीनों मिलकर भी इस एकता सूत्र में बँधे लकड़ियों को नहीं तोड़ पाए। तीनों युवकों की आँख खुल गई और तब से वे मेल से रहने लगे।

शिक्षा: एकता में बल है I

कहानी 13:

शीर्षक: परिश्रम की उपज सोना

एक गाँव में एक बढ़ा किसान रहता था। उसकी पत्नी कुछ दिन पहले ही स्वर्ग सिधार गई थी। उसको अपनी स्थिति भी अच्छी नहीं थी। बहुत कमजोरी भी अनुभव होती थी। उसपर अपने चारों बेटे के निकम्मेपन की चिंता भी उसे हमेशा सताती रहती थी। जब उसे लगा कि वह अंतिम साँस ले रहा है, तब उसने अपने चारों बेटों को अपने पास बुलाया और कहा, "बेटो। मैं आज तुम लोगों को एक राज की बात बताना चाहता हूँ। हमारे खेत में किसी जगह कुछ स्वर्ण मुद्राएँ गड़ो हैं। यदि वह तुम्हें मिल जाएँ, तो तुम्हारी जिंदगी खुशी-खुशी कट जाएगी।" इतना कहने के बाद उसकी मृत्यु हो गई।

चारों बेटों ने यह बात गुप्त रखी। पिता के क्रिया-कर्म के बाद चारों सुबह ही अपनी-अपनी कुदालें लेकर खेत पर निकल पड़ते ओर देर शाम तक खेत खोदते रहने के बाद घर लौटते जब उन लोगों ने सारा खेत खोद डाला और सोना नहीं मिला, तो पास ही एक बुजुर्ग के पास पहुंचे और अपनी व्यथा सुनाई। उस बुजुर्ग ने सब बातें सुन लीं और गंभीर होकर कहा, "जब तुम लोगों ने पूरा खेत खोद ही डाला तो उसमें चीज बो दो।" उन लोगों ने वैसा ही किया। अच्छी फसल हुई, तो थे फिर उस बुजुर्ग के पास पहुँचे। उस बुजुर्ग ने उन्हें उनके पिता की कही बात का अर्थ बताया। उन चारों को परिश्रम की उपज सोना मिल चुका था। अब वे सब मिलकर परिश्रम करते और सुख से रहते।

सीख: परिश्रम की उपज सोना

अभ्यासार्थ:

निम्नलिखित शीर्षकों पर लगभग 150 शब्दों में एक-एक कहानी लिखिए:
  1. लालच बुरी बला है।
  2. बुद्धि-बल से सर्वश्रेष्ठ है।
  3. एकता का महत्त्व 1
  4. दो के झगड़े में तीसरे को लाभ।
  5. तीन से भले चार
  6. साँच को और
  7. कंगन और ब्राह्मण
  8. उपकार का बदला
  9. मगर की चालाकी
  10. घमंडी का सिर नीचा

B: संकेत आधार पर कहानी लेखन

कहानी 14:

संकेत: दो भाई घर में अकेले, फाइल में आतंकियों की जानकारी, आतंकियों का घर में घुसना, फ़ाइल ढूंढ़ना, कमरे में बंद, आतंकी गिरफ्तार
शीर्षक: चतुर समीर

एक दिन समीर और उसका छोटा भाई रमेश दोनों घर में अकेले थे। उनके पिताजी एक पुलिस अधिकारी थे। वे एक लाल रंग की फाइल घर लाए थे। उसमें सभी कुख्यात आतंकवादियों के बारे में जानकारी थी। समीर जानता था कि पापा ने वह फाइल एक अलमारी में सुरक्षित रखी हुई है। समीर और करण खेल रहे थे कि तभी दो आतंकवादी उनके घर में घुस आए और बोले, “लाल फाइल कहाँ है?" समीर बड़ा चालाक था। वह बोला, “शयनकक्ष की अलमारी में ऊपर रखी गई है। मैं वहाँ तक नहीं पहुँच सकता।" दोनों आतंकवादी लाल फाइल को हासिल करने के लिए उस कमरे में गए। जब वे अलमारी में फाइल ढूँढ रहे थे, तब समीर ने धीरे से उस कमरे का दरवाजा बाहर से बंद कर दिया और पिताजी को भी फोन कर दिया जल्दी ही उसके पिताजी पुलिस लेकर वहाँ पहुँच गए। दोनों आतंकवादियों को गिरफ्तार कर लिया गया। इस प्रकार अर्जुन ने अपनी चतुराई से दोनों आतंकवादियों को पकड़वा दिया। सभी ने उनकी खूब सराहना की।

सीख: सूझ-भूझ से किसी भी मुसीबत से निपटा जा सकता है।

कहानी 15:

संकेत: बारिश का आभाव, एक भेड़िया, चरागाह में भेड़ों का झुंड, सारा पानी भी पी जाना, भेड़ें वहाँ से भाग गई
शीर्षक: भेड़िए की योजना

एक बार पूरे देश में सूखा पड़ गया। बारिश के अभाव में सभी नदी-नाले सुख गए। कहीं पर भी अन्न का एक दाना नहीं उपजा। बहुत से जानवर भूख प्यास से मर गए। पास ही के जंगल में एक भेड़िया रहता था।

उस दिन वह अत्यधिक भूखा था। भोजन न मिलने की वजह से वह बहुत दुबला हो गया था। एक दिन उसने जंगल के पास स्थित चरागाह में भेड़ों का झुंड देखा। चरवाहा उस समय वहाँ पर नहीं था। वह अपनी भेड़ों के लिए पीने के पानी की बाल्टियाँ भी छोड़कर गया था। भेड़ों को देखकर भेड़िया खुश हो गया और सोचने लगा, 'मैं इन सब भेड़ों को मारकर खा जाऊँगा और सारा पानी भी पी जाऊँगा।

फिर वह उनसे बोला, “दोस्तो, मैं अत्यधिक बीमार हूँ और चलने-फिरने में असमर्थ हूँ। क्या तुम में से कोई मुझे पीने के लिए थोड़ा पानी दे सकता है।” उसे देखकर भेड़ें सतर्क हो गई। तब उनमें से एक भेड़ बोली, "क्या तुम हमें बेवकूफ समझते हो. हम तुम्हारे पास तुम्हारा भोजन बनने के लिए हरगिज नहीं आएँगे।" इतना कहकर भेड़ें वहाँ से भाग गई। इस प्रकार भेड़ों की सतर्कता के कारण भेड़िए की योजना असफल हो गई और बेचारा भेड़िया बस हाथ मलता ही रह गया।

सीख: बुद्धि सबसे बड़ा धन है।

कहानी 16:

संकेत: आलसी लड़का, पैसों से भरा एक थैला, बिना प्रयास के ही इतने सारे पैसे, व्यर्थ खर्च, कार्य करने की कोई आवश्यकता ही नहीं, कद्र और उपयोगिता
शीर्षक: मेहनत की कमाई

सोनू एक आलसी लड़का था। वह अपना समय यूँ ही आवारागदी करने में व्यतीत करता था। इस कारण वह हमेशा कार्य करने से जी चुराता था। एक दिन उसे पैसों से भरा एक थैला मिला।

वह अपने भाग्य पर बहुत खुश हुआ। वह यह सोच सोचकर खुश हो रहा था कि उसे मिल गए। सोनू ने कुछ पैसों से मिठाई खरीदी, कुछ पैसों से कपड़े व अन्य सामान खरीदा।

इस प्रकार उसने पैसों को व्यर्थ खर्च करना प्रारंभ कर दिया। तब उसकी माँ बोली, “बेटा, पैसा यूँ बर्बाद न करो। इस पैसे का उपयोग किसी व्यवसाय को शुरू करने में करो।" सोनू बोला, "माँ मेरे पास बहुत पैसा है। इसलिए मुझे कार्य करने कोई आवश्यकता ही नहीं है।" धीरे-धीरे सोनू ने सारा पैसा खर्च कर दिया अब उसके पास एक फूटी कौड़ी भी नहीं थी। इस तरह वह एक बार फिर अपनी उसी स्थिति में आ गया। सोनू को एहसास हुआ कि यदि उसने वह धन परिश्रम से कमाया हुआ होता तो उसने अवश्य उसकी कद्र और उपयोगिता समझी होती।

शिक्षा- धन की उपयोगिता तभी समझ आती है जब वह मेहनत से कमाया हुआ हो।

कहानी 17:

संकेत: बंगाल में गोपाल बुद्धिमानी के लिए प्रसिद्ध राजा का मोटा होना- गोपाल का राजा को यह बात बताना राजा का क्रुद्ध होना राजा का एक बकरी गोपाल को देना आज्ञा देना एक महीना बकरी पालने के लिए लेकिन शर्त कि बकरी का वजन न बढ़ा- एक महीने बाद गोपाल का बकरी लेकर आना- बकरी के वजन का न बढ़ना- गोपाल का रहस्य सबके सामने खोलना- राजा से पुरस्कार पाना।
शीर्षक: बुद्धिमान गोपाल

कहानी : बंगाल में गोपाल नामक एक व्यक्ति रहता था। वह अपनी बुद्धिमानी के लिए पूरे बंगाल में प्रसिद्ध था। एक दिन उसे ऐसा लगा कि राजा मोटा हो गया है। उसने यह बात राजा को बताई। लेकिन राजा को उसकी यह बात अच्छी नहीं लगी। एक चरवाहा महल के बाहर बकरी चरा रहा था। राजा ने उसे बुलाकर एक बकरी खरीदी और गोपाल को यह फहकर दे दी, "एक महीने बाद बकरी वापस लेकर आओ। लेकिन ध्यान रहे बकरी का वजन उतना ही होना चाहिए।" एक महीने बाद वह बकरी के साथ वापस आया। बकरी को तौला गया। सभी आश्चर्यचकित रह गए, क्योंकि बकरी का वजन उतना ही था, जितना कि एक महीने पहले। राजा ने आश्चर्य से पूछा, “तुमने यह कैसे कर दिखाया ?" गोपाल ने जवाब दिया, "यह बहुत सरल है, महाराज मैं इसे प्रतिदिन खूब खिलाया करता और उसे जाकर शाही चिड़ियाघर में भाप के पिंजरे के सामने बाँध देता। बकरी हमेशा बाप के डर के साये में रहती। बस, इसलिए इसका वजन नहीं बढ़ा।" राजा सारी बात समझ गया। उसने गोपाल को ढेर सारे पुरस्कार दिए और स्वयं उस दिन से राजकाज में अधिक समय व्यतीत करने लगा। अब वह पहले से अधिक स्वस्थ दिखता था।

शिक्षा: समझदारी किसी भी मुसीबत को टाल सकती है।

कहानी 18:

संकेत: आश्रम, नटखट शिष्य, दीवार फाँदना, उसके गुरुजी यह बात जानते थे, दीवार पर सीढ़ी लगी दिखाई दी, नीचे उतरने में मदद, गुरुजी के प्रेमपूर्ण वचन, गलती के लिए क्षमा
शीर्षक: सबक

एक समय की बात है। एक आश्रम में रवि नाम का एक शिष्य रहता था। वह बहुत अधिक नटखट था। वह प्रत्येक रात आश्रम की दीवार फाँदकर बाहर जाता था परन्तु उसके बाहर जाने की बात कोई नहीं जानता था। सुबह होने से पहले लौट आता। वह सोचता था कि उसके आश्रम से घूमने की बात कोई नहीं जानता लेकिन उसके गुरुजी यह बात जानते थे। वे रवि को रंगे हाथ पकड़ना चाहते थे। एक रात हमेशा की तरह रवि सीढ़ी पर चढ़ा और दीवार फॉदकर बाहर कूद गया।

उसके जाते ही गुरुजी जाग गए। तब उन्हें दीवार पर सीढ़ी लगी दिखाई दी। कुछ घंटे बाद रवि लौट आया और अंधेरे में दीवार पर चढ़ने की कोशिश करने लगा। उस वक्त उसके गुरुजी सीढ़ी के पास ही खड़े थे। उन्होंने रवि की नीचे उतरने में मदद की और बोले, “बेटा, रात में जब तुम बाहर जाते हो तो तुम्हें अपने साथ एक गर्म साल अवश्य रखनी चाहिए।

गुरुजी के प्रेमपूर्ण वचनों का रवि पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा। उसे अपनी गलती का एहसास हुआ और उसने अपनी गलती के लिए क्षमा माँगी। साथ ही उसने गुरु को ऐसी गलती दोबारा न करने का वचन भी दिया।

सीख: प्रेमपूर्ण वचनों का सबक जिंदगी भर याद रहता है।

कहानी 19:

संकेत: पालतु चिड़िया, ताजा पानी और दाना, चालाक बिल्ली डॉक्टर का वेश धारण कर वहाँ पहुँची, स्वास्थ्य परीक्षण, बिल्ली की चाल को तुरंत समझ गई, दुश्मन बिल्ली, मायूस होकर बिल्ली वहाँ से चली गई
शीर्षक: चालाक चिड़िया

एक व्यक्ति ने अपने पालतु चिड़ियों के लिए एक बड़ा-सा पिंजरा बनाया उस पिंजरे के अंदर चिड़िया आराम से रह सकती थीं। वह व्यक्ति प्रतिदिन उन चिड़ियों को ताजा पानी और दाना देता।

एक दिन उस व्यक्ति की अनुपस्थिति में एक चालाक बिल्ली डॉक्टर का वेश धारण कर वहाँ पहुँची और बोली, “मेरे प्यारे दोस्तो पिंजरे का दरवाजा खोलो। मैं एक डॉक्टर हूँ और तुम सब के स्वास्थ्य परीक्षण के लिए यहाँ आई हूँ।" समझदार चिड़ियाएँ बिल्ली की चाल को तुरंत समझ गईं। वे उससे बोली, “ “तुम हमारी दुश्मन बिल्ली हो। हम तुम्हारे लिए दरवाजा हरगिज नहीं खोलेंगे। यहाँ से चली जाओ।" तब बिल्ली बोली, “नहीं, नहीं। मैं तो एक डॉक्टर हूँ। तुम मुझे गलत समझ रहे हो। मैं तुम्हें कोई हानि नहीं पहुँचाऊँगी। कृपया दरवाजा खोल दो।" लेकिन चिड़िया उसकी बातों में नहीं आई। उन्होंने उससे स्पष्ट रूप से मना कर दिया। आखिरकार मायूस होकर बिल्ली वहाँ से चली गई।

सीख: समझदारी किसी भी मुसीबत को टाल सकती है।

कहानी 20:

संकेत: एक चालाक सियार उसका शहर देखने का फैसला शहर में प्रवेश कुलों का भौकना- एक धोयी के घर में घुसना नील के टब में गिरना अपने नए रंग को देखकर खुश होना वापस जंगल आना अन्य जानवरों का उसे देख भयभीत होना अपने को राजा बताना कुछ दिन बाद सियारों का हुआँ हुआँ करना- पोल खुलना सब के क्रोध का शिकार होना।

महावन में एक चालाक सियार रहता था। उसने शहर के विषय में किसी से सुना। उसी दिन से उसकी शहर देखने की इच्छा जोर पकड़ती गई। एक दिन सुहावना मौसम देखकर वह शहर देखने के लिए चल दिया। शहर में प्रवेश करते ही कुत्ते उसके पीछे पड़ गए। वह कुलों से बचने के लिए पास के घर में घुस गया। वह धोबी का घर था। उसने आँगन में नौल का टब रखा हुआ था। भागता हुआ चालाक सियार उस नील के टब में गिर गया। कुत्ते उसे न पाकर भौंकते हुए लोट गए। उनके लौटने के बाद चालाक सियार टब में से निकला। उसकी देह नीली हो चुकी थी।

वह अपने इस नए रूप को देखकर बहुत खुश हुआ। उसी संध्या को यह वापस महावन में आ गया। अन्य जानवर उसे देखकर भागने लगे। उसने उन जानवरों को इकट्ठा करके कहा, "पबराओ मत। मुझे ब्रह्मा जी ने आपका राजा बनाकर भेजा है। आज से सिंह मेरा प्रधानमंत्री होगा और बाप खजांची। इनके अलावा आपको गोग्यता के अनुसार पद दिए जाएँगे।

सब जानवरों ने उसे अपना राजा मान लिया। इस तरह उस चालाक सियार के दिन अच्छे कटने लगे। सभी जानवर से खुश रखने की कोशिश करते थे। एक दिन दूर से आती हुई उसने सियारों की हुआँ हुआँ की ध्वनि सुनी। वह भी हुआँ करने लगा। सिंह और बाघ उसके पास ही बैठे थे। उसको ध्वनि सुनकर उनके मुख से निकला, " अरे, यह तो सियार है। इसने इतने दिनों तक हमारे साथ धोखा किया है। इसे इसका दंड मिलना चाहिए।" इतना कहते ही सिंह और बाप ने सियार को पकड़कर मार डाला सिगार को धोखा देने का फल मिल गया था।

शिक्षा: हमें कभी भी झूठ नहीं बोलना चाहिए, क्यूंकि एक न एक दिन हमारी पोल खुल जाती है।

अभ्यासार्थ:

निम्न कहानियों को पूरा कीजिए

1. एक जंगल जानवरों का राजा शेर जानवरों का तंग करना और मार डालना धीरे-धीरे जानवरों की संख्या कम होना एक छोटे खरगोश की बारी आना शेर को एक झूठी कहानी सुनाना शेर का घमंड में आकर कहानी पर विश्वास करना कुएं में छलांग लगाना जानवरों की प्राण रक्षा
2. जंगल में एक शेर अपने बल पर घमंड पेड़ के नीचे विश्राम करना एक चूहे का शेर को तंग करना चूहे का शेर के पंजे में दबोचा जाना चूहे द्वारा प्राण रक्षा की प्रार्थना करना शेर का हँसकर छोड़ देना उसी जंगल में एक शिकारी जाल बिछाना शेर का जाल में फैसना और चिल्लाना चूहे का बिल से बाहर आना काटकर शेर को स्वतंत्र करना।

C. चित्र के आधार पर कहानी लेखन


चित्र के आधार पर कहानी लेखन में आपको एक चित्र मिलेगी जिसे देखकर आपको अपनी कल्पना से कहानी लिखनी होती है।उस चित्र को ध्यान से देखे और समझने की कोशिश करे की उस चित्र में क्या हो रहा है। उसी के अनुसार अपनी कहानी बुननी शुरू करे। आइये समझते है, एक उदाहरण से।
नीचे दिए गए चित्र के आधार पर कहानी लिखे और उसे है शीर्षक भी दे:

कहानी 21:


...

शीर्षक: लोमड़ी और अंगूर

एक बार एक लोमड़ी बहुत भूखी थी और कुछ खाने की तलाश में थी, उसने हर जगह ढूंढा, लेकिन उसे खाने के लिए कुछ भी नहीं मिला। अंत में, गड़गड़ाहट की आवाज़ करने वाले अपने पेट को लेकर, वह एक किसान के घर की दीवार के पास आकर रुक गई। दीवार के ऊपर, ऐसे बड़े और रसीले अंगूर लटक रहे थे जो उसने शायद ही कभी देखे होंगे । गहरा जामुनी रंग से लोमड़ी को पता चल गया कि यह अंगूर एकदम पके हुए हैं और खाने के लिए तैयार हैं। लोमड़ी ने अपने मुँह में अंगूर पकड़ने के लिए हवा में ऊंची छलांग लगाई, लेकिन वह उन तक पहुँच नहीं सकी। उसने फिर कोशिश की लेकिन वह फिर भी उन तक पहुँच नहीं सकी, उसने और कई बार कोशिश की लेकिन एक बार भी अंगूरों तक पहुँच नहीं पाई। आख़िरकार, लोमड़ी ने घर वापस जाने का फैसला किया और पूरा समय यह कहती रही कि, ‘मुझे यकीन है कि अंगूर वैसे भी खट्टे ही थे’।

शिक्षा: जीवन में कुछ भी मेहनत के बिना नहीं प्राप्त होगा इसलिए मेहनत करें और अपने लक्ष्य को हासिल करे।

कहानी 22:

नीचे दिए गए चित्र के आधार पर कहानी लिखे और उसे है शीर्षक भी दे:


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शीर्षक: दो मित्र और भालू

दो करीबी दोस्त जंगल से गुज़रने वाले एकांत और खतरनाक रास्ते पर चल रहे थे। जैसे–जैसे सूरज ढलने लगा, वे डरने लगे लेकिन उन्होंने एक दूसरे का साथ नहीं छोड़ा। अचानक उन्होंने देखा कि सामने से एक भालू आ रहा है, एक दोस्त सबसे नज़दीकी पेड़ की ओर दौड़ा और फटाफट ऊपर चढ़ गया । लेकिन दूसरा पेड़ पर चढ़ना नहीं जानता था इसलिए वह मृत होने का नाटक करते हुए ज़मीन पर लेट गया। भालू ज़मीन पर पड़े लड़के के पास गया और उसके सिर के चारों ओर सूँघने लगा। लड़के को मरा हुआ जानकर, भालू आगे बढ़ गया। पेड़ पर चढ़ा दोस्त नीचे उतरा और उसने अपने दोस्त से पूछा कि भालू ने उसके कान में क्या कहा। उसने जवाब दिया, ‘उन दोस्तों पर कभी भरोसा मत करना जो तुम्हारी परवाह नहीं करते हैं।

सीख: सच्चा मित्र वही होता है जो मुसीबत में काम आए।

कहानी 23:

नीचे दिए गए चित्र के आधार पर कहानी लिखे और उसे है शीर्षक भी दे:


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शीर्षक: बंदर और मगरमच्छ

नदी किनारे जामुन के पेड़ पर एक बंदर रहता था । वह रोज मीठे मीठे जामुन खुद भी खाता था और अपने मित्र मगरमच्छ को भी खाने को देता था । मगरमच्छ अपनी पत्नी के लिए कुछ जामुन ले गया। उसकी पत्नी को जामुन बहुत पसंद आ गए उसने कहा यदि जामुन कितने मीठे हैं तो रोजाना जामुन खाने वाले बंदर का दिल तो और भी मीठा होगा । उसकी पत्नी ने बंदर का दिल लाने के लिए कहा ।

अगले दिन वह बंदर के पास पहुंचा । मगरमच्छ ने बंदर को कहा कि आज मेरी पत्नी ने दावत रखी है और तुम्हें भी बुलाया है तो तुम मेरे साथ चलो । मगरमच्छ बंदर को अपनी पीठ पर बैठा कर ले आया।

वहां पर उसकी पत्नी ने कहा कि आज हम इस बंदर का दिल खाएंगे । बंदर को पता चलने पर उसने अपना दिमाग चलाया और कहां मैं अपना दिल तो जामुन के पेड़ पर ही छोड़ आया । उसकी पत्नी ने कहा तो फिर से मगरमच्छ की पीठ पर बैठकर अपने पेड़ से अपना दिल ले आओ ।

वह चालाकी से पेड़ पर वापस आकर बैठ गया बेचारा मगरमच्छ मुंह देखता रह गया ।

सीख: समझदारी किसी भी मुसीबत को टाल सकती है।

कहानी 24:

चित्रों के आधार पर कहानी-लेखन


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ज़ोर की गरमी पड़ रही थी। दोपहर की तेज धूप में एक प्यासा कौआ पानी की खोज में इधर-उधर भटक रहा था। सहसा उसे वृक्ष की जड़ के पास एक घड़ा रखा दिखाई दिया। पास जाकर देखा तो पढ़े में पानी था। लेकिन पानी की सतह बहुत नीचे थी। कौए की चाँच वहाँ तक पहुँच नहीं रही थी। सहसा उसके मन में एक विचार आया। वह आस-पास पड़े कंकड़ों को चोंच में दबाकर लाता और एक-एक कर पड़े में डालता जाता। उसका परिश्रम रंग लाया पानी की सतह धीरे-धीरे ऊपर उठने लगी। कुछ देर बाद जल की सतह काफी ऊपर आ गई थी। तब कौए ने अपनी चोंच पड़े में डाली और पानी पीकर अपनी प्यास बुझाई सच है, परिश्रम का फल मीठा होता है।

सीख: जहाँ चाह वहाँ राह

अभ्यासार्थ:

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